दिल्ली हाई कोर्ट (फोटो सौजन्य-सोशल मीडिया)
Delhi High Court On Air Pollution: दिल्ली हाईकोर्ट में दाखिल एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान वायु प्रदूषण और नागरिकों की सेहत को लेकर अदालत ने केंद्र सरकार पर कड़ी नाराजगी जाहिर की। याचिका में मांग की गई है कि एयर प्यूरीफायर को मेडिकल डिवाइस की श्रेणी में शामिल किया जाए, ताकि उन पर लगने वाला जीएसटी हटाया जा सके और आम लोगों को राहत मिल सके। कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि एक इंसान दिन में करीब 21 हजार बार सांस लेता है, ऐसे में प्रदूषित हवा में सांस लेने से होने वाले नुकसान की कल्पना की जा सकती है।
सुनवाई के दौरान जीएसटी विभाग की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि यह मामला पहले ही संसदीय समिति के समक्ष रखा जा चुका है और उस पर दिशा-निर्देश भी दिए गए हैं। इस पर हाईकोर्ट ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “इन ड्यू टाइम का क्या मतलब है, जब हजारों लोगों की जान जा रही हो?”
अदालत ने साफ शब्दों में कहा, “यह न्यूनतम कदम है जो आप उठा सकते हैं। इस शहर के हर नागरिक को साफ हवा चाहिए और अब तक आप वह मुहैया नहीं करा पाए हैं। कम से कम लोगों को एयर प्यूरीफायर तक पहुंच तो दी जा सकती है।”
हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए पूछा कि सरकार लोगों से 15 दिन तक क्या उम्मीद करती है, क्या वे सांस लेना ही बंद कर दें? कोर्ट ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति रोज 21 हजार बार प्रदूषित हवा में सांस ले रहा है, तो इससे सेहत पर पड़ने वाले गंभीर असर को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अदालत ने स्पष्ट किया कि इस स्तर का प्रदूषण लोगों के स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है और इसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए।
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कोर्ट ने सरकार से सवाल किया, “आपको जवाब देने के लिए 15 दिन क्यों चाहिए? वेकेशन बेंच में जवाब क्यों नहीं दिया जा सकता? हम आपको कोई अतिरिक्त समय नहीं देंगे।” हाईकोर्ट ने यह भी पूछा कि एयर इमरजेंसी जैसे हालात में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत अस्थायी छूट क्यों नहीं दी जा सकती। साथ ही सरकार से यह जानकारी भी मांगी गई कि जीएसटी काउंसिल की बैठक कब होगी और उसमें कौन सा प्रस्ताव रखा जाएगा। अंत में अदालत ने सख्त निर्देश देते हुए कहा कि आज दोपहर 2:30 बजे तक स्पष्ट रूप से बताया जाए कि सरकार का रुख और निर्देश क्या हैं।