राहुल की भारतीयता पर प्रश्नचिन्ह क्यों (डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: भारत जोड़ो यात्रा के दौरान लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने टिप्पणी की थी कि भारत और चीन के बीच हुए युद्ध में चीन ने भारत की 2000 वर्ग किलोमीटर जमीन हड़प ली। उन्होंने गलवान घाटी की हिंसक झड़प में चीनी सैनिकों द्वारा भारतीय जवानों की पिटाई करने की बात भी कही थी। जाहिर है, राहुल ने सुनी-सुनाई बातों के आधार पर ऐसा कहा था। उनके बयान पर आपत्ति जतानेवाली मानहानि याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई थी। इस पर जज ने राहुल को हिदायत दी कि यदि आप सच्चे भारतीय हैं तो आप इस तरह की बातें नहीं करेंगे। आपके पास इन बातों का सबूत क्या है? आपको जो भी बोलना है संसद में बोला करें, सार्वजनिक रूप से ऐसी बातें न करें। कांग्रेस ने इस पर आपत्ति जताई है।
इंडिया गठबंधन के नेताओं ने कहा कि न्यायाधीश की टिप्पणी असाधारण और अवांछित है जो राजनीतिक दलों के लोकतांत्रिक अधिकारों पर सवाल उठाती है। राजनीतिक दलों, खास तौर पर विपक्ष के नेता की जिम्मेदारी है कि वह राष्ट्रीय हित के मुद्दे पर टिप्पणी करें। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने जज की टिप्पणी को अनुचित बताया। प्रियंका गांधी ने कहा कि ऐसी टिप्पणी करना न्यायपालिका के दायरे में नहीं आता। सरकार से सवाल पूछना विपक्ष के नेता का कर्तव्य है। मेरा भाई सेना के प्रति सम्मान रखता है और उसके खिलाफ कभी भी नहीं बोल सकता। जहां तक चीन द्वारा भारत की जमीन हड़पने की बात है, डा। राममनोहर लोहिया ने भी यह मुद्दा संसद में उठाया था कि चीन ने भारत की 22,000 वर्ग मील जमीन पर कब्जा किया है। हमारा तीर्थ कैलाश मानसरोवर भी उसके कब्जे में है।
मुद्दा यह है कि राहुल ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान यह बात क्यों कही? उनकी आमतौर पर शिकायत यह रही है कि उन्हें लोकसभा में बोलने नहीं दिया जाता। जहां तक गलवान घाटी में हुई झड़प का मामला है, दोनों पक्षों में कांटेदार तार लगे डंडों से लड़ाई हुई जिसमें चीन के लगभग 100 सैनिक हताहत हुए थे। यह बहस का मुद्दा बन गया है कि क्या अदालत को अपनी संस्थागत सीमा से परे जाकर किसी की भारतीयता व देशभक्ति पर सवाल करना चाहिए अथवा विपक्ष के नेता की जिम्मेदारियों व राजनीतिक दल की प्राथमिकताओं पर निर्णय लेना चाहिए? इस तरह की टिप्पणी क्यों की जानी चाहिए कि कौन सच्चा भारतीय है या नहीं है? यदि राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा की बजाय संसद में भी यह बात कहते तो उनका बयान मीडिया के जरिए जनता तक जरूर जाता।
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अब तो जो सरकार की नीतियों का समर्थन न करे, उसे भी सरकार विरोधी की बजाय भारत विरोधी या राष्ट्रविरोधी कह दिया जाता है। क्या यह रवैया उचित है। अभिव्यक्ति का अधिकार संविधान में दिया गया है। राहुल से असहमत हुआ जा सकता है लेकिन उनके सच्चे भारतीय होने पर सवाल उठाना क्या न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में आता है? मूलाधिकारों पर बंदिश लगाने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा की दुहाई दी जाने लगी है। लोकतंत्र में विचार भिन्नता व बहस का स्थान है।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा