
अमेरिका सहित युद्ध सामग्री बनाने वाले पश्चिमी देश यही चाहते हैं कि दुनिया के किसी न किसी हिस्से में लड़ाई चलती रहे ताकि उनके हथियारों की खपत होती रहे. यह शस्त्र निर्माण उद्योग अरबों-खरबों डॉलर्स का है. इसमें लड़ाकू व बॉम्बर विमान, हेलीकॉप्टर, मिसाइल, टैंक, बख्तरबंद गाड़ियां और शक्तिशाली विध्वंसक बम एवं राइफल्स शामिल हैं. इन हथियारों की बिक्री तभी हो सकती है जब 2 पड़ोसी देशों को लड़ाया जाए.
यदि ऐसा नहीं हो पाता तो अमेरिका खुद ही किसी देश पर परमाणु, जैविक या रासायनिक हथियार रखने का मनगढ़ंत आरोप लगाकर उस पर हमला कर देता है जैसा कि उसने इराक पर किया था. सद्दाम हुसैन के मारे जाने के बाद भी वहां ऐसे कोई हथियार नहीं मिल पाए थे. 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध में भी पाकिस्तान के पीछे अमेरिका का हाथ था. जब-जब पाकिस्तान को अमेरिका से फौजी सहायता मिली, उसने भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ा था. अमेरिकी पैटन टैंकों और सैबर जेट विमानों को पाकर पाकिस्तान इतना उन्मत्त हो गया था कि उसने भारत पर हमला कर दिया था.
पश्चिमी देशों ने यूक्रेन के साथ छल किया. उससे ऐसे वादे किए जिन्हें पूरा करना जरूरी नहीं समझा गया. यूक्रेन इस भरोसे में रहा कि संकट की घड़ी में उसे अमेरिका या नाटो सैनिक संधि के देश मदद करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. जब रूस और यूक्रेन ने बातचीत करने की प्रक्रिया शुरू की तो मध्यस्थता करने कोई नहीं आया. पश्चिमी देशों ने यूक्रेन को अरबों डॉलर की शस्त्रास्त्र सामग्री की आपूर्ति का वादा कर रखा है. अमेरिकी व यूरोपीय शस्त्र निर्माता कंपनियों के शेयर्स का मूल्य 52 प्रतिशत तक बढ़ गया तो इसकी वजह रूस-यूक्रेन युद्ध है.
यूक्रेन पर हमला करने के पीछे रूस ने विविध कारण गिनाए हैं लेकिन इसके लिए माहौल पिछले कई माह से गरमा रहा था. पश्चिमी ताकतें, खासतौर पर अमेरिका रूस को गंभीर नतीजे भुगतने की चेतावनी और यूक्रेन को हरसंभव सहयोग का आश्वासन दे रहा था. अमेरिका व पश्चिमी देशों ने रूस पर वित्तीय प्रतिबंध लगाए परंतु इससे जरा भी विचलित न होते हुए रूस ने हमला जारी रखा. कोई भी पश्चिमी देश यूक्रेन की सीधी मदद करने आगे नहीं आया. संकट की घड़ी में यूक्रेन को उसके हाल पर छोड़ दिया गया. पश्चिमी देश कभी भी यूक्रेन की मदद करना नहीं चाहते थे क्योंकि उसने नाटो जैसी सैनिक संधि का सदस्य बनना नहीं चाहा था.
अब यूक्रेन बुरी तरह तबाह हो रहा है. बमबारी से उसके शहर खंडहर बनते जा रहे हैं. बेसहारा महिलाएं व बच्चे भागकर पड़ोसी देशों में शरण ले रहे हैं. गरीबी व भूख उन्हें वेश्यावृत्ति के दलदल में ढकेल सकती है. यूक्रेन यद्यपि बहादुरी से लड़ रहा है लेकिन रूस की ताकत से उसका कोई मुकाबला नहीं है. रूस यूक्रेन के परमाणु ठिकानों पर कब्जा करना चाहता है. इसके साथ ही वह फिर से यूएसएसआर (सोवियत संघ) को पुनर्जीवित करना चाहता है जो गोर्बाच्योव के समय टूटकर अनेक गणराज्यों में बिखर गया था. भारत की पहली चिंता यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों को सुरक्षित स्वदेश लाने की थी. इसके अलावा युद्ध की वजह से बढ़ने वाली महंगाई भी गहरी चिंता का विषय है.






