धनखड़ के इस्तीफे के पीछे सेहत या सियासत (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मानसून सत्र के पहले दिन राज्यसभा की कार्यवाही का संचालन किया।सोमवार की शाम को सियासी गलियारे में हलचल हो गई कि अचानक ऐसा क्या हुआ कि ‘मेडिकल’ कारण बताते हुए उपराष्ट्रपति ने अपने पद से तुरंत प्रभाव से इस्तीफा दे दिया? क्या उनके त्यागपत्र के पीछे कोई राजनीतिक या अन्य वजह है या वास्तव में स्वास्थ्य चिंताएं ही हैं? मेडिकल कारणों व अपनी सेहत को वरीयता देने का हवाला देते हुए धनखड़ ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भेजे अपने पत्र में लिखा है कि संविधान के अनुच्छेद 67 (ए) के तहत उनका इस्तीफा तुरंत प्रभाव से लागू होता है।अगस्त 2022 में उपराष्ट्रपति का पद संभालने वाले धनखड़ ने अपने त्यागपत्र में यह भी लिखा कि भारत की उल्लेखनीय आर्थिक प्रगति को देखना व उसमें हिस्सा लेना मेरे लिए सम्मान की बात रही है।
धनखड़ के इस्तीफा देने से 60 दिन की खिड़की खुल गई है, जिस दौरान नए उपराष्ट्रपति को चुना जाना है।इस बीच राज्यसभा के उपाध्यक्ष हरिवंश नारायण सिंह, जिनकी नियुक्ति अगस्त 2022 में हुई थी, उच्च सदन के सभापति का अस्थाई रूप से कार्यभार संभालेंगे।अपने कार्यकाल के बीच में इस्तीफा देने वाले धनखड़ तीसरे उपराष्ट्रपति हैं।राष्ट्रपति जाकिर हुसैन के आकस्मिक निधन (3 मई 1969) के बाद उपराष्ट्रपति वीवी गिरि कार्यवाहक राष्ट्रपति बने थे, लेकिन उन्होंने स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप में राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के लिए 2 जुलाई 1969 को उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया था।
वह अपना कार्यकाल पूरा न करने वाले पहले उपराष्ट्रपति बने।उनके बाद बीच कार्यकाल में उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत ने 21 जुलाई 2007 को अपने पद से इस्तीफा दिया, क्योंकि वह कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए की प्रत्याशी प्रतिभा पाटिल से राष्ट्रपति का चुनाव हार गए थे।शेखावत के इस्तीफे के बाद 21 दिन तक उपराष्ट्रपति का पद खाली रहा, फिर हामिद अंसारी इस पद पर चुने गए।इन तीनों ने जुलाई माह में ही क्यों इस्तीफा दिया? यह सोचने की बात है।ध्यान रहे कि आर वेंकटरमण, शंकर दयाल शर्मा और केआर नारायण ने भी उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दिया था, लेकिन राष्ट्रपति चुने जाने के बाद आधिकारिक तौर पर ‘मेडिकल ग्राउंड्स’ के आधार पर इस्तीफा देने वाले धनखड़ पहले उपराष्ट्रपति हैं।कृष्णकांत एकमात्र उपराष्ट्रपति रहे जिनका पद पर रहते हुए 27 जुलाई 2002 को निधन हुआ था।
हाल ही में 74 वर्षीय धनखड़ ने एंजियोप्लास्टी कराई थी, इसलिए बहुत मुमकिन है कि वह वास्तव में अपनी सेहत को वरीयता देना चाहते हों, वैसे भी सदन का संचालन काफी तनावपूर्ण होता है, लेकिन उनके अचानक इस्तीफे ने सरकार व विपक्ष को आश्चर्य में डाल दिया है।बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री जगत प्रकाश नड्डा ने मानसून सत्र के पहले दिन राज्यसभा में बोलते हुए एक बहुत ही अजीब बात कही, जो सदन के प्रोटोकॉल के विरुद्ध तो थी ही, लेकिन उसमें अहंकार व तानाशाही की गंध भी आ रही थी।उन्होंने कहा कि जो कुछ वह कह रहे हैं, केवल वह ही सदन की रिकॉर्डिंग में जाएगा और कुछ नहीं जाएगा।नड्डा के इस बयान पर धनखड़ ने कुछ नहीं कहा।सदन की रिकॉर्डिंग में क्या रहेगा और क्या नहीं रहेगा, यह तय करने का अधिकार राज्यसभा में सभापति का और लोकसभा में स्पीकर का होता है।
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सदस्य केवल उनसे आग्रह कर सकते हैं कि फलां फलां बात को सदन की रिकॉर्डिंग में शामिल न किया जाए।विपक्ष हमेशा यह आरोप लगाता है कि धनखड़ बीजेपी का पक्ष लेते हैं।बंगाल के राज्यपाल रहते हुए भी उन्होंने यही काम किया, जिसके इनाम में उन्हें उपराष्ट्रपति का पद दिया गया।विपक्ष का यह भी आरोप है कि धनखड़ न्यायपालिका की आलोचना भी इन्हीं कारणों से करते हैं।धनखड़ बहुत भावुक व्यक्ति हैं।
मोदी सरकार 2.0 के आखिरी शीतकालीन सत्र में जब राज्यसभा व लोकसभा के 78 सांसदों को निलंबित कर दिया गया था तो यह सभी सांसद संसद भवन की सीढ़यों पर बैठकर निलंबन का विरोध कर रहे थे।तभी अचानक तृणमूल सांसद कल्याण बनर्जी खड़े होकर धनखड़ की मिमिक्री करने लगे, जिसका वीडियो बनाते हुए राहुल गांधी हंस रहे थे।इस पर धनखड़ ने न सिर्फ अपनी नाराजगी व्यक्त की थी बल्कि मजाक बनाने वाले नेताओं को बुद्धि के लिए ईश्वर से कामना भी की थी।सवाल यह भी उठ रहे हैं कि कहीं नड्डा के विवादित बयान से आहत होकर धनखड़ ने भावुकता में आकर तो इस्तीफा नहीं दे दिया? –
लेख-विजय कपूर के द्वारा