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संपादकीय: जवाबदेही करनी होगी तय, कानूनों की न्यायिक व्याख्या आवश्यक

भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने 1973 के केशवानंद भारती मामले के निर्णय को चुनौती देते हुए संविधान के अनुच्छेद 142 को संसद की सर्वोच्चता के खिलाफ एटमी मिसाइल की संज्ञा दी है।

  • By दीपिका पाल
Updated On: Apr 28, 2025 | 01:27 PM

कानूनों की न्यायिक व्याख्या आवश्यक (सौ. डिजाइन फोटो)

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नवभारत डिजिटल डेस्क: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने 1973 के केशवानंद भारती मामले के निर्णय को चुनौती देते हुए संविधान के अनुच्छेद 142 को संसद की सर्वोच्चता के खिलाफ एटमी मिसाइल की संज्ञा दी है।उस ऐतिहासिक फैसले में संविधान के मूल ढांचे की रक्षा करने के सुप्रीम कोर्ट के अधिकार को स्थापित किया गया था और संविधान में संशोधन करने के संसद के अधिकार को सीमाबद्ध किया गया था।

यह विषय इसलिए चर्चा में आया क्योंकि राज्यों के विधानमंडलों द्वारा पारित विधेयकों को राज्यपाल द्वारा लंबे समय तक रोके जाने को सुप्रीम कोर्ट ने अनुचित माना था।तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि ने जिन 10 विधेयकों को रोका हुआ था वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद स्वीकृत माने जाएंगे।इसमें दो राय नहीं कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला सभी विपक्ष शासित राज्यों के लिए ऐतिहासिक जीत है और राज्य के प्रशासनिक कामकाज में अनावश्यक दखलंदाजी करनेवाले राज्यपालों के लिए चेतावनी भी है।

इससे राज्यपाल की गरिमा कम नहीं होती बल्कि चुनी हुई विधानसभा की श्रेष्ठता अवश्य स्थापित होती है।सुप्रीम कोर्ट ने कानून बनाने के संसद के संवैधानिक अधिकार पर कोई सवाल नहीं उठाया।वह सिर्फ यह परीक्षण करना चाहता है कि ऐसे कानून संविधान की भावना के अनुरूप हैं या नहीं।संविधान निर्माताओं ने नियंत्रण और संतुलन का सिद्धांत रखा है।यदि कोई राजनीतिक पार्टी अपने भारी बहुमत से ऐसा प्रस्ताव पारित कर ले जो संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन करता हो तो न्यायपालिका को उसकी व्याख्या करने का अधिकार रहेगा।सुप्रीम कोर्ट का यही मत है कि राज्यपाल के पास पॉकेट वीटो का अधिकार नहीं है।

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1974 के शमशेर सिंह बनाम पंजाब राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया था कि राज्यपाल केवल संवैधानिक प्रमुख है।राज्य की एग्जीक्यूटिव पावर (अधिशासी शक्तियां) वास्तव में मंत्रिमंडल द्वारा लागू की जाती हैं।संविधान निर्माताओं ने कल्पना की थी कि योग्य व निष्पक्ष व्यक्ति ही राजभवन में जाएंगे और वह बिना पक्षपात संविधान की भावना के अनुरूप कार्य करेंगे।समय के साथ राज्यपाल के अराजनीतिक होने की कल्पना गलत साबित हुई।केंद्र में सत्तारूढ़ दल अपने प्रति निष्ठावान लोगों को राज्यपाल नियुक्त कर देता है जिनकी विपक्ष शासित राज्य सरकार से नहीं पटती।इसलिए सरकारिया आयोग 1987 व एमएम पंछी आयोग 2010 ने सभी राज्यपालों द्वारा विधेयकों पर फैसला लेने के लिए समयसीमा निर्धारित करने की सिफारिश की थी।इन सिफारिशों पर संसद को अमल करना चाहिए था लेकिन सुप्रीम कोर्ट को इस मुद्दे पर ऐतिहासिक फैसला देना पड़ा।

लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा

Vice president jagdeep dhankhar challenged the decision of 1973 kesavananda bharati case

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Published On: Apr 28, 2025 | 01:27 PM

Topics:  

  • Jagdeep Dhankhar
  • Special Coverage
  • Supreme Court

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