ट्रंप ने भारत के लिए बड़ा परमाणु अवसर पैदा किया (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी परमाणु परीक्षण की समय-सीमा के बारे में कहा, ‘आपको बहुत जल्द पता चल जाएगा.’ इसके साथ ही उन्होंने नए भूमिगत विस्फोटों पर जोर दिया।ट्रंप का यह आदेश रूस द्वारा ‘पोसाइडन’ नामक एक परमाणु-संचालित पानी के भीतर चलने वाले ड्रोन के परीक्षण के तुरंत बाद आया है।ट्रंप के इस निर्देश ने व्यापक परमाणु-परीक्षण-प्रतिबंध संधि (सीटीबीटी) के क्षरण को लेकर चिंताएं पैदा कर दी हैं, जो नागरिक और सैन्य दोनों उद्देश्यों के लिए सभी परमाणु विस्फोटों पर वैश्विक प्रतिबंध लगाती है।
इन घटनाक्रमों के बीच विशेषज्ञों ने परमाणु हथियारों के परीक्षण पर भारत के स्वैच्छिक प्रतिबंध पर सवाल उठाए हैं।1998 के पोखरण-II परीक्षणों के बाद से भारत अपनी ‘पहले-उपयोग-नहीं’ नीति के तहत ‘विश्वसनीय न्यूनतम निवारण’ के लिए प्रतिबद्ध रहा है।अब पड़ोसी देशों पाकिस्तान और चीन के दो-मोर्चे वाले परमाणु साये में अमेरिका के इस कदम ने भारत के लिए परमाणु परीक्षण फिर से शुरू करने का एक रास्ता खोल दिया है.
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत द्वारा संभावित बहाली से उसे अपने हाइड्रोजन बम की क्षमता को मान्य करने का मौका मिल सकता है, जिस पर अतीत में संदेह जताया गया है।2025 तक 9 देशों क्रमशः अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन, फ्रांस, भारत, पाकिस्तान, इजराइल और उत्तर कोरिया के पास परमाणु हथियार हैं।इनमें से अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन ने हाइड्रोजन बम की पुष्टि की है, जबकि भारत और उत्तर कोरिया के दावे विवादित हैं।पोखरण-II के एक दशक से भी अधिक समय बाद डीआरडीओ के वैज्ञानिक के संथानम ने मई 1998 में कहा था कि थर्मोन्यूक्लियर या हाइड्रोजन बम कम क्षमता का था और वह देश के रणनीतिक उद्देश्यों को पूरा नहीं कर पाएगा।
हालांकि, परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) के तत्कालीन अध्यक्ष राजगोपाला चिदंबरम ने दावों का खंडन किया था।परीक्षण के उपकरणों का कुल भार लगभग 10-15 किलो टन था, जो आधिकारिक 58 किलो टन के दावे से काफी कम था।1998 में कुल 5 उपकरणों का परीक्षण किया गया था, जिनमें एक थर्मोन्यूक्लियर हथियार भी शामिल था।यह एक प्रकार का परमाणु बम है, जो किसी भी नियमित परमाणु विस्फोट को और भी अधिक शक्तिशाली बनाने के लिए अतिरिक्त ईंधन का उपयोग करता है।
2025 तक भारत का परमाणु भंडार लगभग 180 आयुधों का है, जो दो मोर्चों वाली परमाणु छाया के छाया के सामने बौना है।पाकिस्तान के 170 आयुध और चीन के अनुमानित 600, जिनके 2030 तक बढ़कर 1,000 हो जाने का अनुमान है।विशेषज्ञों के मुताबिक पाकिस्तान को संभाला जा सकता है, लेकिन ज्यादा चिंता की बात चीनी परमाणु शस्त्रागार है।खास तौर पर फ्रैक्शनल ऑर्बिटल बॉम्बार्डमेंट सिस्टम (एफओबीएस) की चीनी क्षमता, जो किसी भी मिसाइल रक्षा प्रणाली को बेअसर कर देती है।
चीन द्वारा 2021 में परीक्षण किए गए एफओबीएस एक हथियार प्रणाली है, जो एक परमाणु हथियार को पृथ्वी की आंशिक कक्षा में स्थापित करती है और फिर उसे एक अप्रत्याशित दिशा से लक्ष्य पर प्रहार करने के लिए वापस नीचे गिराती है ताकि वह मिसाइल सुरक्षा कवच से बच सके।यही कारण है कि कुछ भारतीय विशेषज्ञ इस वैश्विक अवसर का उपयोग करने का आह्वान कर रहे हैं।इससे भारत अपनी निवारक क्षमता आंक पहले इस्तेमाल न करने की नीति को मजबूत कर सकेगा।
विशेषज्ञों के मुताबिक पाकिस्तान को संभाला जा सकता है, लेकिन ज्यादा चिंता की बात चीनी परमाणु शस्त्रागार है।खास तौर पर फ्रैक्शनल ऑर्बिटल बॉम्बार्डमेंट सिस्टम (एफओबीएस) की चीनी क्षमता, जो किसी भी मिसाइल रक्षा प्रणाली को बेअसर कर देती है.
लेख- निहार रंजन सक्सेना@ नवभारत