तबाही के 3 घंटों में दहल गया उत्तराखंड (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: केदारनाथ धाम की 16-17 जून 2013 की रात का जिक्र आते ही लोग सिहर जाते हैं।जब आकाश में बिजली चमक रही थी और नीचे मंदाकिनी नदी भयानक बाढ़ में उमड़ रही थी।ऐसी ही भयावह आपदा 5 अगस्त 2025 को उत्तरकाशी के तीन गांव में दोहराई गई।पहले धराली में रूह कंपा देने वाला मंजर 34 सेकंड के भीतर सब कुछ तबाह कर गया।गंगोत्री के रास्ते में मुख्य ठहराव स्थल के रूप में जाना जाने वाला धराली गांव महज 34 सेकंड के जलप्रलय में तबाह हो गया।150 से ज्यादा घरों वाले इस गांव में 30 होटल रिसॉर्ट तथा 25 होम स्टे वाले गांव में महज आधे मिनट के भीतर, आधे से ज्यादा घरों, होटलों और रिसोर्ट का नामोनिशान नहीं बचा।हताहतों की संख्या काफी अधिक हो सकती है।
अभी लोग धराली के इस भयावह मंजर की हतप्रभता की जकड़ में ही थे कि ठीक दोपहर 12 बजे धराली गांव से 5 किलोमीटर दूर हर्सिल गांव में भी धराली की तरह ही एक भयावह बादल फट गया और तेलगाढ़ नाले में आयी बाढ़ ने सेना के एक कैंप को अपनी चपेट में ले लिया।11 जवान लापता थे और सेना का हैलीपैड बिल्कुल तबाह हो चुका था।हर्सिल की तबाही अभी हाहाकार कर ही थी कि ठीक 3 बजे एक और तबाही पास के सुक्खी गांव में हुई।यहां भी एक दर्जन से ज्यादा लोगों के गायब होने की बात कही जा रही है।
हिमालय की दरार पर बसा धराली का यह भयावह मंजर 10 साल में तीसरी बार देखने को मिला।2013 और 2014 में भी यहां बादल फटे थे, तब भी खीर नाले ने भी ऐसी तबाही मचाई थी।इससे पहले 1864 में भी इसी तरह की तबाही ने धराली का नामोनिशान मिटा दिया था।10 साल पहले भूगर्भ वैज्ञानिकों ने शासन-प्रशासन को धराली गांव को कहीं और बसाने की सलाह दी थी।यह गांव गंगोत्री के रास्ते में उस जगह बसा है, जहां गंगोत्री धाम तक पहुंचने से पहले का आखिरी बड़ा कैंप लगता है।
यहां तीर्थयात्रियों से बहुत ज्यादा आमदनी होती है, तो भला ऐसी कमाई वाली जगह को छोड़कर कौन जाना चाहता है।जबकि भूगर्भ वैज्ञानिकों ने शासन, प्रशासन और गांव वालों को तब भी बताया था कि आपदाओं के लिहाज से धराली गांव आपदा बम पर बैठा हुआ है।मगर यहां के लोग अपनी जगह पर ही बने रहे और 2013 के बाद तीसरी बार फिर से आपदा की चपेट में आने के कारण दो तिहाई से ज्यादा गांव तबाह हो गया।धराली ट्रांस हिमालय की मेन सेंट्रल थर्स्ट में बसा हुआ है, वह भी 4000 मीटर के ऊपर।दरअसल यह थर्स्ट एक दरार है, जो मुख्य हिमालय को ट्रांस हिमालय से जोड़ती है।
यह भूकंप का अति संवेदनशील क्षेत्र है, जिस पहाड़ से खीर गंगा नदी निकलती है।वह 600 मीटर की ऊंचाई पर है।इसलिए जब सैलाब आता है तो वह बुलेट की माफिक तेज और भयावह होता है।पानी का प्रवाह इतने वेग से आता है कि मजबूत से मजबूत लोहे और सीमेंट का स्ट्रक्चर पानी के बुलबुले की तरह ध्वस्त हो जाता है।पिछले पांच वर्षों में यानी 2020 से 2025 के बीच उत्तराखंड और हिमाचल में अत्यधिक वर्षा, बादल फटने की 7,700 से भी ज्यादा आपदाएं हुई हैं।
इसके बाद भी हिमाचल और उत्तराखंड की सरकारों ने बार-बार इन घटने वाली तबाही की घटनाओं को रोकने के लिए क्या ठोस उपाय किए हैं? उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश गर्व से ढिंढोरा पीटते हैं कि वे देश के सबसे पर्यटक अनुकूल राज्य हैं और दोनों ही राज्य दिन रात देश-विदेश के पर्यटकों को अपने यहां बुलाने के लिए नयी से नयी कोशिशें करते रहते हैं।आखिर इन राज्यों की सरकारों और प्रशासन को यह डराने वाला मंजर क्यों परेशान नहीं करता? वह पूरे साल इन क्षेत्रों को पर्यटकों से आबाद रखना चाहते हैं।
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आखिर किसी 150 वाले गांव में 30 से ज्यादा होटल व रिसोर्ट्स कहां का सामान्य आंकड़ा है? छोटे से गांव में इतने ज्यादा होटल, रिसोर्ट्स, सीमेंट कंक्रीट के ढांचे, महज पैसों के लालच के लिए गांव को तबाही के बम में तब्दील कर लेना नहीं तो और क्या है? प्रशासनिक अमले को और स्थानीय लोगों को ये समझना होगा कि धरती के चप्पे-चप्पे को पर्यटन की ऐशगाह या धर्म के फैशनेबल उन्माद के हवाले नहीं किया जा सकता।सभी पीड़ित पक्षों को यह अक्ल आना जरूरी है कि कुदरत सिर्फ दोहन के लिए नहीं है.
लेख- वीना गौतम के द्वारा