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संपादकीय: कैसे चल रही हैं हजारों छात्रविहीन शालाएं

Indian Education: केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की ताजा रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि ऐसी शून्य प्रवेश या जीरो एडमिशन वाली स्कूलों में लगभग 20,817 शिक्षक कार्यरत हैं। बिना पढ़ाए वेतन ले रहे है।

  • By दीपिका पाल
Updated On: Oct 29, 2025 | 01:23 PM

कैसे चल रही हैं हजारों छात्रविहीन शालाएं (सौ. डिजाइन फोटो)

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नवभारत डिजिटल डेस्क: विस्मयजनक है कि देश की 8,000 सरकारी स्कूलों में वि एक भी छात्र नहीं है।वहां 2024-25 के शैक्षणिक सत्र में एक भी विद्यार्थी ने प्रवेश नहीं लिया।केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की ताजा रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि ऐसी शून्य प्रवेश या जीरो एडमिशन वाली स्कूलों में लगभग 20,817 शिक्षक कार्यरत हैं अर्थात वह बिना पढ़ाए मुफ्त का वेतन ले रहे हैं।गनीमत है कि इन स्कूलों में महाराष्ट्र का एक भी स्कूल नहीं है।वास्तव में यह व्यवस्था का दोष है।कोई देखता ही नहीं कि जब छात्र नहीं हैं तो शिक्षक कौन सा कामकाज कर रहे हैं।उनका मूल्यमापन या काम का ऑडिट क्यों नहीं होता ? शिक्षा विभाग का उद्देश्य बच्चों को शिक्षा प्रदान करना है या सिर्फ शिक्षकों को बिना काम किए वेतन बांटना है?

हो सकता है कि यह रिपोर्ट आने के बाद ऐसी विद्यार्थी विहीन सरकारी स्कूलें बंद कर दी जाएं और शिक्षकों की नौकरी भी खत्म हो जाए।वर्तमान समय में शिक्षा का व्यावसायीकरण हो गया है।निजी स्कूलों की तादाद बढ़ी है जबकि सरकारी स्कूल बंद हुए हैं।यूपी में तो पिछले दशक में इतना भ्रष्टाचार था कि एक ही शिक्षक कई स्कूलों में नौकरी करता था और हर जगह से वेतन उठाता था।इस गोरखधंधे की ऊपर तक सेटिंग थी जिसमें कमीशनखोरी होती थी।जब नकदी की बजाय खाते में सीधे पेमेंट होने लगा और शिक्षकों की बायोमीट्रिक हाजिरी दर्ज होने लगी तो यह भ्रष्टाचार रुका।ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी स्कूलों में छात्र नहीं मिलने की एक वजह यह भी है कि वहां के लोग अपना गांव छोड़कर परिवारसहित रोजगार के लिए शहर पलायन करते हैं गांव में सिर्फ बूढ़े लोग रह जाते हैं।

जब गांव उजाड़ हो जाएगा तो विद्यार्थी मिलेंगे कहां से? देश के विभिन्न राज्यों में ऐसे सैकड़ों गांव हैं जहां खेती और टूटा-फूटा मकान छोड़कर कुछ भी नहीं है।खेत में घाटा होने से लोग शहरों की ओर भागते हैं।गरीबों व आदिवासियों का यही हाल है।यदि कुछ गांवों में बच्चे हैं भी तो उनके पालक उन्हें सरकारी स्कूल की बजाय अंग्रेजी माध्यम की निजी स्कूल में दाखिल करना पसंद करते हैं।सरकारी लापरवाही की वजह से गांव-देहात में भी अंग्रेजी माध्यम की प्राइवेट स्कूलें फैलती चली जा रही हैं।इन गैरअनुदानित स्कूलों में पढ़ाई का क्या स्तर है, इससे सरकार को लेना-देना नहीं है।शहरों में भी हिंदी व मराठी माध्यम की जिला परिषद की स्कूलें बंद हो रही हैं।वहां इमारत जर्जर हो चुकी है।

ये भी पढ़ें–  नवभारत विशेष के लेख पढ़ने के लिए क्लिक करें  

खिड़की-दरवाज टूट गए हैं, छत से पानी टपकता है।ऐसी स्कूल में कौन अपने बच्चे को पढ़ाना चाहेगा? शहरों में महानगरपालिका की वह पुरानी स्कूल बंद हो रही हैं, जहां पढ़ने वाले बच्चे आगे चलकर डॉक्टर-इंजीनियर बना करते थे।शिक्षकों की पात्रता व गुणवत्ता पर भी प्रश्नचिन्ह लगा है।क्या व्यवस्था में कभी सुधार हो सकेगा ?

लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा

There is not a single student in 8000 government schools in the country

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Published On: Oct 29, 2025 | 01:23 PM

Topics:  

  • Central and State Government
  • Indian Education
  • Right to Education
  • UP Schools

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