पैसा कमाने की अनोखी तरकीब (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, शेक्सपियर ने कहा था- व्हाट इज इन ए नेम (नाम में क्या रखा है)- इसके बावजूद नाम व्यक्ति की जिंदगी भर की पहचान है।नाम की वजह से नामीगिरामी लोगों को जाना जाता है।जेल जानेवाले को नाम नहीं, नंबर से पहचाना जाता है।भारत में नामकरण संस्कार का विशेष महत्व है।बारसे में 12 दिन के बच्चे का नाम रखा जाता है.’
हमने कहा, ‘अमेरिका में ऐसा नहीं है।वहां शिशु के जन्म के पहले ही अस्पताल के अधिकारियों को 2 मनपसंद नाम देने पड़ते हैं।एक लड़के का और एक लड़की की।जन्म लेते ही उसका बर्थ सर्टिफिकेट जारी कर दिया जाता है।यह नाम बदला नहीं जा सकता।इस संबंध में झुम्पा लाहिरी का उपन्यास ‘दि नेमसेक’ प्रकाशित हुआ था जिस पर इसी नाम की फिल्म बनी थी।उसमें नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने अभिनय किया था।एक बंगाली युवक को अपने 2 नामों की समस्या से अमेरिका में जूझना पड़ता है।बंगाल की प्रथा के अनुसार वहां दादी अपने पोते का नाम रखती है।वह डाक नाम (घरेलू नाम) कहलाता है लेकिन स्कूल कॉलेज में प्रचलित नाम अलग होता है।उसे भालो नाम कहते हैं।उस युवक का घरेलू नाम गोगोल और प्रचलित नाम अशोक रहता है।इस वजह से उसे कठिनाइयों से जूझना पड़ता है.’
पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, मुद्दे की बात यह है कि सैन फ्रांसिस्को की टेलर हम्फ्री नामक महिला बच्चों का नाम रखने के लिए लगभग 27,00,000 रुपए शुल्क लेती है।2018 में जब उसने यह बिजनेस शुरू किया था तब सिर्फ 100 डॉलर लेकर बच्चे का नामकरण करती थी।वह परिवार के देश, संस्कृति व पालकों की रुचि के मुताबिक बच्चे का नाम रखती है।उस महिला के सोशल मीडिया पर 1,00,000 से अधिक फॉलोअर्स हैं।’
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हमने कहा, ‘अपने यहां पंडित बच्चे का राशि नाम रखकर जन्म कुंडली बनाने के लिए मुश्किल से 500 से 1000 रुपए तक दक्षिणा लेते हैं।माता-पिता या परिवारजन अपनी पसंद का प्रचलित नाम रख सकते हैं या गूगल से खोज सकते हैं।लैंडलाइन फोन के जमाने में कुछ लोग टेलीफोन डायरेक्टरी देखकर बच्चे का अच्छा सा नाम तलाशा करते थे।हमारे यहां नाम की कमी नहीं है।भगवान कृष्ण के मोहन, मनमोहन, मदनगोपाल, मधुसूदन, मुरारी, माधव, केशव, कन्हैया, किशन, कान्हा, बालकिसन, मदनमोहन, मुरलीधर, बंसीधर, श्यामसुंदर, विट्ठल, गोपाल, राधावल्लभ, वासुदेव, देवकीनंदन, यशोदानंदन, नंदलाला, हरि जैसे कितने ही नाम हैं।वैष्णवजन उन्हें लाला या ठाकुरजी कहते हैं।’
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा