शिव मंदिर पर लड़ रहे थाईलैंड व कंबोडिया (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: दक्षिण पूर्व एशिया के इन दो पड़ौसी मुल्कों के बीच चल रही इस लड़ाई में इस सप्ताह के दौरान लगभग 24 व्यक्ति मारे गए हैं और दोनों तरफ के तकरीबन 5 लाख लोग विस्थापित हुए हैं।दोनों बैंकाक व नोमपेन्ह एक-दूसरे के नागरिकों पर हमले करने के आरोप लगा रहे हैं, जबकि दोनों तरफ के लोग दुखी हैं कि ट्रंप के हस्तक्षेप के बावजूद सीजफायर नहीं हो पाया है और एयर स्ट्राइक्स व आर्टिलरी शेलिंग जारी है।टकराव की जड़ कोलोनियल-युग में निर्धारित किया गया 800 किमी का बॉर्डर है यानी विवाद बहुत पुराना है, जिसमें एक प्राचीन शिव मंदिर है, जिस पर दोनों बौद्ध बहुल थाईलैंड व कंबोडिया अपना-अपना दावा करते हैं।
दिल्ली कम से कम तीन बार इन दोनों देशों से कह चुकी है कि शिव मंदिर को कोई नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए।कंबोडिया व थाईलैंड के बीच डांगरेक पर्वत श्रृंखला प्राकृतिक सीमा बनाती है।इसकी खड़ी चट्टानों पर प्रेह विहार है जिसका निर्माण 9वीं व 12वीं शताब्दियों के बीच खेमर राजाओं जैसे यसोवर्मन 1 और सूर्यवर्मन 1 व 2 ने कराया था।यह मंदिर भगवान शिव का पवित्र पहाड़ी आवास है।इसका प्राचीन नाम श्री शिखराश्वर है, जिसका अर्थ है ‘पहाड़ों के महान ईश्वर’।आज मुख्य रूप से कंबोडिया की तरफ से ही इस मंदिर तक पहुंचा जा सकता है, लेकिन मंदिर जिस जगह स्थित है उसकी वजह से यह लंबे समय से विवाद का बिंदु बना हुआ है।थाईलैंड व कंबोडिया के बीच विवाद की जड़ कोलोनियल-युग की सीमाओं में है।
फ्रांको सियामीज समझौते में डांगरेक पहाड़यिों में बह रही नदी को ही सीमा के रूप में परिभाषित कर दिया गया।जब फ्रांस के सर्वेयरों ने नक्शा तैयार किया तो उन्होंने प्रेह विहार को कंबोडिया की तरफ दिखा दिया, बावजूद इसके कि मंदिर जिस चट्टान पर है उस तक थाईलैंड की तरफ से आसानी से पहुंचा जा सकता है।जब कंबोडिया को 1953 में फ्रांस से आजादी मिली तो उसके शासकों ने नए सिरे से प्रेह विहार पर अपना दावा किया, लेकिन थाईलैंड ने उस क्षेत्र में अपनी फौज तैनात कर दी।कंबोडिया विवाद को हेग स्थित इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) लेकर गया, जिसने 1962 में फैसला दिया कि मंदिर कंबोडिया के सम्प्रभु क्षेत्र में है।
अदालत ने इस बात का संज्ञान लिया कि 1904 का फ्रांको-सियामीज समझौता मेलोंग नदी को सीमा मानता है।थाईलैंड ने दावा किया कि नक्शे की कोई क़ानूनी हैसियत नहीं है और बैंकाक ने कभी भी उसे औपचारिक रूप से स्वीकार नहीं किया।आईसीजे ने इस दावे को खारिज कर दिया और थाईलैंड को आदेश दिया कि वह अपनी सेना या पुलिस को वहां से हटा ले।हालांकि मंदिर तो कंबोडिया को दे दिया गया, लेकिन उसके आसपास की भूमि की सम्प्रभुता अपरिभाषित रही, जिसकी वजह से समय-समय पर हिंसक टकराव जारी रहा।
यूनेस्को ने 2008 में मंदिर को वर्ल्ड हेरिटेज साईट घोषित किया, जिससे इसका ऐतिहासिक महत्व तो बढ़ा, लेकिन क्रॉस बॉर्डर लड़ाइयां आरंभ हो गईं।कंबोडिया ने आईसीजे से 1962 के फैसले की व्याख्या करने का आग्रह किया यह कहते हुए कि थाईलैंड मंदिर पर तो उसकी सम्प्रभुता को मान्यता देता है, लेकिन उसके आसपास के क्षेत्र पर नहीं।
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शांति के नोबेल पुरस्कार पर आंखें गड़ाए हुए अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने थाईलैंड के प्रधानमंत्री अनुतिन चरणाविराकुल और कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन मनेत से 12 दिसंबर 2025 को फोन पर वार्ता करने के बाद दावा किया कि उन्होंने इन दोनों देशों के बीच युद्धविराम करा दिया है।लेकिन ट्रंप की इस घोषणा के तुरंत बाद चरणाविराकुल ने कहा कि फोन वार्ता के दौरान युद्धविराम के मुद्दे पर तो कोई बात हुई ही नहीं थी।चरणाविराकुल की बात सही प्रतीत होती है, क्योंकि अगले ही दिन 13 दिसंबर को कंबोडिया ने न सिर्फ थाईलैंड के 4 सैनिकों की हत्या कर दी बल्कि थाईलैंड के साथ उसने अपनी बॉर्डर क्रॉसिंग्स को भी बंद कर दिया।
लेख-शाहिद ए चौधरी के द्वारा