महाराष्ट्र में मराठा आंदोलन (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: एक साथ सभी को खुश नहीं रखा जा सकता। जरांगे को संतुष्ट किया तो भुजबल का पारा गर्म हो गया। कद्दावर ओबीसी नेता व कैबिनेट मंत्री छगन भुजबल ने सरकार के इस फैसले पर तीखी आपत्ति जताई है जिसमें मराठा समाज के लिए हैदराबाद गजट को मान्यता दी गई है। उन्होंने कड़ी चेतावनी दी कि यदि मराठा आरक्षण देने के लिए ओबीसी कोटे पर आंच आई तो इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। ऐसी स्थिति में उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने अपनी राष्ट्रवादी पार्टी की बैठक बुलाई और अपने मंत्री छगन भुजबल को संयम से काम लेने को कहा। उन्हें आश्वासन दिया कि हैदराबाद गजट से ओबीसी के आरक्षण पर असर नहीं होगा। उन्होंने भुजबल से कहा कि यदि उन्हें कोई आपत्ति है तो पार्टी फोरम पर चर्चा करें।
सार्वजनिक बयान देने से महायुति सरकार को लेकर जनता में अच्छा संदेश नहीं जाता। मराठा आरक्षण के जीआर की वजह से नाराज भुजबल ने कैबिनेट बैठक का बहिष्कार किया। उन्होंने कहा कि इस जीआर को हाईकोर्ट में चुनौती देने के लिए वकीलों से सलाह ली जा रही है। अन्य पिछड़ा वर्ग का रोष देखते हुए राज्य सरकार ने ओबीसी के लिए भी मंत्रिमंडलीय उपसमिति गठित की है। राजस्व मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले की अध्यक्षता में बनी उपसमिति में 8 मंत्रियों का समावेश है। आमतौर पर सभी प्रकार के आंदोलन को राजनीतिक चश्मे से देखा जाता है। उसमें जात-पात लाकर व्याख्या की जाती है। इसे मराठा विरुद्ध मुख्यमंत्री फडणवीस का रूप देने की कोशिश की गई थी। जरांगे के आंदोलन के पीछे एकनाथ शिंदे का हाथ होने की भी चर्चा थी। वास्तव में बहुत बड़ी तादाद में आंदोलनकारियों के मुंबई पहुंचने से वहां की व्यवस्था चरमराने लगी थी।
यातायात व स्वच्छता के लिए भी चुनौती उत्पन्न हो गई थी। फिर भी यह बात सही है कि प्रादेशिक विकास के असंतुलन, कृषि की बेहाली तथा रोजगार के अवसरों के अभाव की वजह से मराठवाडा के मराठा समाज का बुरा हाल है। पश्चिम महाराष्ट्र की समृद्धि का पैमाना सभी मराठा समाज पर लागू नहीं होता। इसीलिए मराठा आंदोलन का केंद्रबिंदु मराठवाडा ही रहा है। रही बात लगभग 125 वर्ष पुराने हैदराबाद गजट की जिसमें उस समय निजामशाही के मराठवाडा की जनगणना का विवरण दर्ज है। एकनाथ शिंदे ने मुख्यमंत्री रहते हुए न्या। संदीप शिंदे समिति नियुक्त की थी। इस समिति ने हैदराबाद जाकर सभी सरकारी दफ्तरों से 47,845 पंजीयन खोजे। इसके आधार पर सरकार के पास कुणबी प्रमाणपत्र के लिए 2,39,671 आवेदन आए। इसकी उचित जांच कर मराठवाडा में नए सिरे से 2,39,021 लोगों को अन्य पिछड़ा वर्ग में प्रवेश दिया गया।
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अर्थात नई प्रक्रिया के अनुसार इतने मराठा कुणबी हो गए। इस तरह हैदराबाद गजट को गत वर्ष ही लागू कर दिया गया। तब इस आंदोलन से क्या मिला? भुजबल को भी पता है कि आश्वासन के अलावा जरांगे को कुछ नहीं मिला। मराठे को एकमुश्त कुणबी मानकर प्रमाणपत्र देने जैसे मुद्दे पर कई वर्षों से विचार हो रहा है लेकिन कुछ भी हाथ नहीं लगा। समस्या का हल तभी होगा जब संसद आरक्षण की संवैधानिक सीमा बढ़ाएगी और सुप्रीम कोर्ट उसे मंजूरी देगा।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा