निर्मला सीतारमण (डिजाइन फोटो)
नवभारत डेस्क: यद्यपि 1991 की तुलना में अब तक जीडीपी 14 गुना बढ़ चुका है, फोरेक्स रिजर्व जो जनवरी 1991 में 1 बिलियन डॉलर था अब 650 बिलियन डॉलर हैं। प्रति व्यक्ति जीडीपी 300 डॉलर से 9 गुना बढ़कर लगभग 2700 डॉलर हो गया है। हमें सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, फूड सुरक्षा का अधिकार, मनरेगा के रूप में रोजगार की गारंटी और इस किस्म के अन्य अनेक अधिकार मिले।
इसके बावजूद हम गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, महंगाई आदि समस्याओं से जूझ रहे हैं। पीपीपी के हिसाब से हम 222 देशों में 150 वें स्थान पर हैं। अधिकांश लोगों का लिविंग स्टैंडर्ड केवल 8 प्रतिशत से अधिक की तेज विकास दर से ही बेहतर हो सकता है, लेकिन यह आर्थिक सुधारों के दूसरे दौर से ही संभव हो सकेगा।
आज की राजनीति एकदम अलग है। गठबंधन सरकार में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शक्तिशाली बॉस हैं, कल्याण व अधिकारों की सक्रियता के साथ ही विकास पर भी फोकस किया जा सकता है। अगर आप विकास को अनदेखा कर देंगे तो परेशानियां, कठिनाइयां व समस्याएं आपकी प्रतीक्षा में रहेंगी, आज जब हर राजनीतिक पार्टी मतदाताओं को रिझाने व पटाने के लिए एक नई कैश ट्रांसफर योजना के बारे में मंथन कर रही है, और कोई पार्टी विकास नीतियों के बारे में बात ही नहीं करना चाहती तो यह तथ्य अधिक प्रासंगिक व महत्वपूर्ण हो जाता है।
आर्थिक सुधार तो ऐसा मंत्र बन गया है, जिसका कोई अर्थ ही नहीं है। दूसरा यह कि विकास व प्रोजेक्ट कार्यों को पर्यावरण के मुकाबले में न रखा जाये। जो सुधार कार्यक्रम कहीं बीच में खो गये उन्हें फिर से तलाश करके रास्ते पर लाया जाये ताकि हर नागरिक चैन की सांस ले सके.
नवभारत विशेष से संबंधित ख़बरों को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
लेख- शाहिद ए चौधरी द्वारा