कृषि आय के लिए दुश्मन बनी ग्रामीण महंगाई (सौ.डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: बेचारा किसान क्या करे? उसकी हालत ‘आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपैया’ जैसी होकर रह गई है।उसकी आय की तुलना में उसका खर्च बढ़ता जा रहा है।किसान ने तो अब उस चुनावी वायदे को याद करना भी बंद कर दिया है, जिसके तहत उसकी आय 2022 तक दोगुनी होनी थी।अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भारत से जो व्यापार समझौता करना चाहते हैं, उसमें उनका दबाव है कि कृषि क्षेत्र उनके देश के लिए खोल दिया जाये।
दस प्रमुख फसलों की समीक्षा करने से मालूम होता है कि मक्का, मूंगफली व रेपसीड/सरसों को छोड़कर शेष सात फसलों- धान, सोयाबीन, कपास, अरहर /तूर और चना, गेहूं व गन्ना की कृषि आय वृद्धि ग्रामीण महंगाई दर से कम रही है।किसानों पर दोहरी मार पड़ रही है।एक तो उनकी आय में वृद्धि नहीं हो रही है और दूसरी यह कि खर्च इतना बढ़ गया है कि लाभ अंतर (प्रॉफिट मार्जिन) कम होता जा रहा है।यह बात कमीशन फॉर एग्रीकल्चरल कास्ट्स एंड प्राइसिज (सीएसीपी) द्वारा एकत्र डाटा की समीक्षा से सामने आई है।
वर्ष 2013-14 में धान के लिए निवेश लागत 25,179 रुपये प्रति हेक्टेयर थी, जबकि परिवार श्रम का मूल्य 8,452 रुपये प्रति हेक्टेयर लगाया गया, जोकि कुल 33,651 रुपये बैठा।फसल का मूल्य 53,242 रुपये प्रति हेक्टेयर था, जिसका अर्थ हुआ कि लाभ19,611 रुपये प्रति हेक्टेयर हुआ।वर्ष 2023-24 में धान के लिए निवेश लागत व परिवार श्रम 61,314 रुपये प्रति हेक्टेयर हो गया।फसल का मूल्य 91,530 रुपये प्रति हेक्टेयर मिला और इस लिहाज से आय 30,216 रुपये प्रति हेक्टेयर हुई।हालांकि आय में 54 प्रतिशत की वृद्धि हुई, लेकिन 2013-14 और 2023-24 के बीच ग्रामीण क्षेत्रों में महंगाई दर में इजाफा 65 प्रतिशत का हुआ यानी जिस हिसाब से महंगाई बढ़ी उस हिसाब से आय नहीं बढ़ी।2013-14 में निवेश लागत व श्रम के हिसाब से प्रॉफिट मार्जिन 58 प्रतिशत था जो 2023-24 में गिरकर 49.3 प्रतिशत रह गया।
जहां धान खरीफ फसल है वहीं गेहूं मुख्यतः रबी फसल है।लेकिन एक दशक के दौरान इसकी तुलना धान से करने पर भी आय में वृद्धि व प्रॉफिट मार्जिन में सामान पैटर्न देखने को मिलता है।वर्ष 2012-13 में गेहूं के लिए निवेश लागत व परिवार श्रम का मूल्य 23,914 रुपये 53,356 रुपये प्रति हेक्टेयर था, जिसका अर्थ हुआ कि लाभ 29,442 रुपये प्रति हेक्टेयर हुआ।वर्ष 2022-23 में गेहूं के लिए निवेश लागत व परिवार श्रम 43,760 रुपये प्रति हेक्टेयर हो गया।फसल का मूल्य 88,939 रुपये प्रति हेक्टेयर मिला और इस लिहाज से आय 45,179 रुपये प्रति हेक्टेयर हुई।
हालांकि आय में 53 प्रतिशत की वृद्धि हुई, लेकिन 2012-13 और 2022-23 के बीच ग्रामीण क्षेत्रों में महंगाई दर में इजाफा 71 प्रतिशत का हुआ यानी जिस हिसाब से महंगाई बढ़ी उस हिसाब से आय नहीं बढ़ी।इसके अतिरिक्त इस फसल ने भी प्रॉफिट मार्जिन में गिरावट दिखी।2012-13 में निवेश लागत व श्रम के हिसाब से प्रॉफिट मार्जिन 123 प्रतिशत था, जो 2022-23 में गिरकर 103 प्रतिशत रह गया।
गन्ना व अन्य प्रमुख फसलों ने भी कुल आय में स्थिरता देखी।गन्ने से आय जो 2012-13 में 96,451 रुपये प्रति हेक्टेयर थी, वह 2022-23 में बढ़कर 1,21,668 रुपये प्रति हेक्टेयर तो अवश्य हुई, लेकिन यह 26 प्रतिशत की वृद्धि इस अवधि के दौरान बढ़ी ग्रामीण महंगाई (71 प्रतिशत) से बहुत कम है।उच्चतम आउटपुट के आधार पर जिन दस प्रमुख फसलों की तुलना की गई, उनमें केवल तीन ने ग्रामीण महंगाई में हुई वृद्धि के मुकाबले में दस वर्ष के दौरान अधिक आय अर्जित की।ये हैं मक्का (162 प्रतिशत) व मूंगफली (71.4 प्रतिशत) जब ग्रामीण महंगाई दर 65 प्रतिशत रही और रेपसीड व सरसों जब ग्रामीण महंगाई दर 71 प्रतिशत रही।
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शेष सात फसलों के लिए आय में वृद्धि ग्रामीण महंगाई दर से कम रही।किसानों की बढ़ती आत्महत्याओं की वजह यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में निरंतर बढ़ती महंगाई के कारण जिस हिसाब से कृषि लागत व परिवार श्रम में उन्हें वृद्धि करनी पड़ रही है उस हिसाब से उनकी आय में इजाफा नहीं हो रहा है और उनका प्रॉफिट मार्जिन भी निरंतर कम होता जा रहा है।इस समस्या का हल तभी निकल सकता है जब राजनीतिक दल संसद में इस विषय पर गहन चर्चा करें.
लेख- नरेंद्र शर्मा के द्वारा