मोहन भागवत (सौ. सोशल मी
नवभारत डिजिटल डेस्क: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख डॉ.मोहन भागवत ने आरएसएस के शताब्दी समारोह में न केवल देश के लिए सांस्कृतिक एकता और आत्मनिर्भरता की बात दोहरायी बल्कि मोदी सरकार की सामरिक, आर्थिक और सामाजिक नीतियों पर परोक्ष आलोचना भी की।एक तरह से यह भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के लिए सलाह या सीख की तरह था।इस संबोधन में आरएसएस ने अपनी ताकत और सीमाओं दोनों का ही स्पष्ट उल्लेख किया और देश तथा लोकतंत्र के लिए उसके विचार क्या हैं, इसे भी गहराई से स्पष्ट किया।
भागवत ने स्वदेशी और स्वावलंबन यानी आत्मनिर्भरता की जरूरत, प्राकृतिक पर्यावरण और हिमालयी भू-भाग की स्थिति को विकास के आईने में नये सिरे से देखना, सामाजिक एकता बनाने की जरूरत, असामाजिक तत्वों से सावधान रहने की चेतावनी और अंतरराष्ट्रीय आर्थिक दबावों के सामने सूझबूझ से खड़े रहने व आगे बढ़ने की स्थिति को रेखांकित किया।भागवत ने स्पष्ट शब्दों में कहा, ‘डिपेंडेंस मस्ट नॉट टर्न इन्टु कंपल्शन’ यानी वैश्विक निर्भरता तो ठीक है, लेकिन ध्यान रहे यह हमारी बाध्यता न बन जाए।उनके संबोधन का अर्थ साफ था कि अमेरिका की टैरिफ नीतियां, उनके हित में हैं।लेकिन भारत को अपने हितों की परवाह करना लाजिमी है।इसके साथ ही उन्होंने सरकार को असंवैधानिक तत्वों से सावधान रहने की सलाह दी।
उन्होंने साफ शब्दों में कहा, कई ताकतें भारत को आंतरिक तौर पर अस्थिर करने की कोशिशें कर रही हैं.’ उन्होंने सरकार को सावधान रहने के लिए आगाह किया।संघप्रमुख ने साफ शब्दों में कहा कि इस समय देश की कुछ आंतरिक और कुछ बाहरी ताकतें हमें अस्थिर करना चाहती हैं।उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि हमारे पास एक संविधान और कानून है, हमारे अपने मतभेद उसी के दायरे में रहने चाहिए।साम्प्रदायिकता को उकसाने वाली ताकतों से हमें हर समय सावधान रहने की जरूरत है।आरएसएस प्रमुख ने जोर देकर कहा कि हिमालयी क्षेत्र में जिस तरह की पर्यावरणीय समस्याएं हाल के दिनों में उभरकर सामने आयी हैं, वो बेहद खतरनाक हैं- ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना, असमय वर्षा और भूस्खलन की घटनाएं ये सभी स्थितियां हमारे विकास मॉडल की खामियों को उजागर करती हैं।हमें समय रहते चेत जाना चाहिए।
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भागवत ने कहा, आरएसएस को अपना यह कर्तव्य जारी रखना चाहिए, यह राष्ट्रहित में है।संघ प्रमुख का भाषण केवल सांस्कृतिक प्रेरणा तक सीमित नहीं था बल्कि सरकार को एक सावधानी भरा संदेश था।उन्होंने पड़ोस के देशों में जिस तरह से युवा पीढ़ी यानी जेन-जी के विद्रोह उभरकर सामने आये हैं, उन पर भी चिंता व्यक्त की और देशवासियों तथा सरकार को आगाह किया कि ऐसी ताकतों को भारत में उभरने देने से चौकन्ना रहना चाहिए।क्योंकि ये ताकतें किसी परिवर्तन के लिए ऐसे विद्रोहों को हवा नहीं देतीं बल्कि देश को कमजोर करती हैं।मोहन भागवत के इस विजयादशमी संबोधन को केंद्र सरकार के प्रति आलोचनात्मक इसलिए भी कहा जा सकता है, क्योंकि वह सरकार की उद्योग और आर्थिक नीतियों पर साफ-साफ शब्दों में सवाल खड़ा कर रहे हैं।जब वह कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय निर्भरता हमारी बाध्यता न बन जाए तो वह इशारा कर रहे हैं कि कैसे अंतरराष्ट्रीय दबाव आज हमारी अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ रहे हैं और इनसे निकलना क्यों बहुत जरूरी है?
लेख- वीना गौतम के द्वारा