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रिजर्व बैंक नहीं दिखा रहा मिडिल क्लास पर अपनी रहम, EMI बनती जा रही है जानलेवा

भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति ने 6 दिसंबर को लगातार 11वीं बार रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया। इसका मतलब यह है कि जिन लोगों ने पिछले तीन सालों से भारी-भरकम EMI चुका रहे हैं, उन्हें इससे कोई राहत नहीं मिलेगी।

  • By मृणाल पाठक
Updated On: Apr 04, 2025 | 11:30 AM

शक्तिकांत दास (डिजाइन फोटो)

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नवभारत डेस्क: भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति ने 6 दिसंबर को लगातार 11वीं बार रैपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया। इसका मतलब यह है कि पिछले तीन सालों से गाड़ी, घर और कई दूसरी मदों के लिए जिन लोगों ने बैंक या वित्तीय संस्थानों से कर्ज ले रखा है और उसकी भारी भरकम ईएमआई चुका रहे हैं, उन्हें इससे कोई राहत नहीं मिलेगी। पिछले 3 वर्षों से बढ़ी हुए ब्याज दरों से पिस रहे करीब 20 करोड़ भारतीय अभी लगातार जानलेवा बने ईएमआई के फंदे से जकड़े रहेंगे।

इस बात पर कोई अफसोस दिखाने के बजाय कि कोरोना के बाद लगातार बढ़ी हुई ब्याज दरों से पिस रहे लोगों को कोई राहत नहीं मिली, उल्टे आरबीआई इसी बात को राहत बनाकर पेश कर रही हैं कि आपकी ईएमआई और नहीं बढ़ेगी। कोरोना के बाद करीब डेढ़ साल के भीतर लगातार रैपो रेट बढ़ाकर जो ईएमआई की किस्तें 6 से 7 हजार रूपये के बीच थीं, वो 8.5 से 9.5 हजार रूपये तक पहुंच चुकी हैं, लेकिन आरबीआई के अधिकारी और गवर्नर बड़ी मासूमियत से लोगों को उल्टे राहत देने का भ्रम देते हुए, यह जताने की कोशिश कर रहे हैं कि खुश हो जाइये, फिलहाल आप जो ईएमआई दे रहे हैं, वही देते रहेंगे।

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और नेशनल हाउसिंग बैंक की अलग अलग रिपोर्ट्स के मुताबिक मार्च 2024 में 4 करोड़ भारतीयों ने सभी बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थानों से अकेले होम लोन ही करीब 25 लाख करोड़ रुपये का ले रखा है। इसमें से 60 से 65 फीसदी होम लोन तो अकेले दो सरकारी बैंकों, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और पंजाब नेशनल बैंक द्वारा लिया गया है।

लोगों पर भारी आर्थिक बोझ

हर महीने इन होम लोन के कारण ही आम लोगों को कोरोना के बाद से करीब 10 से 12 हजार करोड़ रुपये का ब्याज ज्यादा चुकाना पड़ रहा है। देश में करीब 15 करोड़ लोग हर महीने विभिन्न तरह की ईएमआई का भुगतान करते हैं। इनमें 15 से 20 प्रतिशत ऐसे लोग हैं जो एक साथ तीन-तीन, चार-चार ईएमआई भर रहे हैं। ऐसे लोगों को 2021 के बाद से लगातार ब्याज की बढ़ी दरों के कारण हर महीने अगर वो 70 से 80 हजार रुपये की ईएमआई दे रहे हैं तो 15 से 21 हजार रूपये तक उन्हें कोरोना के समय से ज्यादा देना पड़ रहा है।

इसका मतलब यह है कि ऐसे लोग साल में बढ़ी हुई ब्याज दरों के कारण डेढ़ से पौने दो लाख रुपये ज्यादा दे रहे हैं। लेकिन आरबीआई को लोगों के गले में ईएमआई का यह जानलेवा दर्द महसूस ही नहीं हो रहा आरबीआई अपनी सारी ताकत खाद्यान्नों के चलते बढ़ने वाली महंगाई को अंकुश लगाने पर भिड़ी हुई है और इसके लिए वह आम लोगों से सहानुभूति की भी उम्मीद कर रही है। आरबीआई का मानना है कि अगर रैपो रेट घटा दिये गए तो महंगाई 7 से 8 फीसदी तक जा सकती है। जिन लोगों ने घर और वाहन खरीद रखे हैं, उनकी बढ़ी हुई ईएमआई में किसी तरह की राहत नहीं मिल रही तो उनके साथ कितना नाइंसाफी हो रही है।

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मांग में बेहद कमजोरी आई

आरबीआई ने अपना वही पुराना राग दोहराया है कि अगर रैपो रेट कम कर दिया गया तो, बाजार में पूंजी की भरमार हो जायेगी और महंगाई पर काबू पाना मुश्किल हो जायेगा। हालांकि बैंक ने अपनी तिमाही समीक्षा में यह भी पाया है कि जीडीपी का ग्रोथ रेट 6.7 फीसदी से घटकर 5.4 फीसदी तक पहुंचना, एक बड़ा झटका है।

इससे साफ मतलब है कि घरेलू बाजार में निजी मांग में बेहद कमजोरी आई है। इससे सालाना ग्रोथ रेट भी 1 से 1.5 फीसदी तक प्रभावित हुई है। ऐसा होना स्वाभाविक है। जब लगातार पहले से कर्ज की किस्तें दे रहे लोगों को कोई राहत नहीं मिलेगी तो आखिर वे अपनी मांग को कम नहीं करेंगे तो क्या करेंगे? रियल एस्टेट के बाजार में मंहगे मकानों की मांग भले 4 से 10 फीसदी तक बनी हुई हो, लेकिन छोटे और मझौले मकानों की मांग में बेहद गिरावट आ चुकी है। प्रॉपर्टी का सैकेंडरी बाजार तो लोन की दरों के कारण लगभग ठप ही पड़ा है।

छोटे मकान बिक ही नहीं रहे, क्योंकि 15 से 20 लाख तक का लोन लेने पर इन दिनों 12 से 14.5 हजार रुपये तक प्रतिमाह ब्याज में चुकाने पड़ रहे हैं, जबकि बाजार में इससे भी कम में दो बीएचके का किराये में मकान उपलब्ध है, तो भला लोग अपने के नाम पर ब्याज का इतना जानलेवा फंदा डालकर क्यों मकान लेंगे? यह अकारण नहीं है कि मुंबई के रियल एस्टेट बाजार में 10 से 20 लाख वाले मकानों की मांग दो फीसदी भी नहीं है।

दरअसल यह सरकार का अपना निजी विवेक है कि वह पहले से कर्ज ले चुके लोगों को लगातार ब्याज की दरों पर सख्त पहरा बिठाकर उनकी आर्थिक हालत कमजोर करे या नये लोगों को ब्याज लेने के लिए प्रोत्साहित करके अपनी इंकम को बढ़ाए। इसके लिए कर्ज की दरों को कम करना होगा, जिससे पहले से कर्ज लिए लोगों को भी थोड़ी राहत महसूस हो।

मगर आम लोगों का ही बहाना बनाकर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया लगातार मिडल क्लास लोगों से, जिन्होंने करीब 60 से 70 लाख करोड़ रुपये का विभिन्न वजहों से लोन ले रखा है, उनसे हर महीने भारी भरकम ब्याज दरों के कारण औसतन 60 से 70 हजार करोड़ रुपये ज्यादा वसूल रही है।

पिछले तीन सालों में एक बार भी रैपो रेट की दरें कम नहीं हुईं, पहले करीब सवा साल तक लगातार बढ़ती रहीं और बढ़ते बढ़ते जब खतरनाक ऊंचाई तक पहुंच गई हैं तो आरबीआई की पिछली 11 समीक्षा बैठकों के समयांतराल में ये पहले से ही बढ़ी हुई ये ब्याज दरें कम होने का नाम ही नहीं ले रहीं। इसलिए तमाम टोने टोटके कर लेने के बाद भी देश का मिडल क्लास परेशान है। सरकार को और आरबीआई को आम लोगों को राहत देने के नाम पर विभिन्न तरह का कर्ज लिए देश के करीब 25 करोड़ लोगों को इस तरह ईएमआई के शिकंजे में नहीं कसना चाहिए।

लेख- लोकमित्र गौतम द्वारा

Rbi did not show mercy emi will continue to be deadly

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Published On: Dec 09, 2024 | 01:46 PM

Topics:  

  • EMI
  • RBI
  • Repo Rate

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