एफिल टावर से ऊंचा चिनाब रेलवे पुल (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: प्रधानमंत्री मोदी ने रियासी जिले में चिनाब नदी पर बने दुनिया के सबसे ऊंचे रेलवे आर्च ब्रिज का तिरंगा दिखाकर उद्घाटन किया। इस तरह करीब सवा सौ वर्षों की जद्दोजहद के बाद कश्मीर तक भारतीय रेल पहुंच गई। यह रेल पुल इंजीनियरिंग की दुनिया का एक कमाल है और इसके अस्तित्व में आने से भारत की पुल इंजीनियरिंग का डंका पूरी दुनिया में बज रहा है। रियासी जिले में बक्कल और कौड़ी के बीच इस पुल को बनने में पूरे 22 साल लगे। यह दुनिया का सबसे ऊंचा नदी पुल है। इसकी लंबाई सवा किलोमीटर से भी ज्यादा है और ऊंचाई 359 मीटर है यानी पेरिस के एफिल टावर से भी यह 29 मीटर ऊंचा है। पुल की जब रूपरेखा बनी थी, तब के मुकाबले जब पुल बनकर निर्मित हुआ, तो 6 गुना ज्यादा बढ़कर 1486 करोड़ रुपए में यह दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे पुल अस्तित्व में आया है।
7 जून 2025 से पहली बार कटरा से श्रीनगर के लिए ट्रेन शुरू हुई है। आईआरसीटीसी की वेबसाइट पर ट्रेन की टिकटों की बुकिंग की जा सकेगी। हफ्ते में 6 दिन यह ट्रेन कटरा और श्रीनगर तक चलेगी। इस वंदे भारत ट्रेन में सिर्फ दो ट्रैवल क्लास होंगे, एक चेयर कार और दूसरा एग्जीक्यूटिव क्लास। चेयर कार का किराया 715 रुपये प्रति सीट और एग्जीक्यूटिव क्लास में एक सीट का किराया 1320 रुपये होगा। अभी यह ट्रेन कटरा से चलकर सिर्फ बनिहाल में रुकेगी और इसी तरह श्रीनगर से चलकर भी बनिहाल में ही रुकेगी। आजादी के इतने साल बाद भी बर्फबारी के सीजन में कश्मीर देश के बाकी हिस्से से कट जाता है। नेशनल हाईवे 44 के बाद होने से घाटी जाने का कोई दूसरा रास्ता नहीं है। सड़क के रास्ते से जम्मू से कश्मीर जाने में जहां 8 से 10 घंटे लगते हैं, वहीं कटरा-श्रीनगर रूट पर चलने वाली इस वंदे भारत ट्रेन से जिसका नंबर 26401 अप और 26402 डाउन है, अब तीन घंटे लगेंगे।
चिनाब ब्रिज का विचार सबसे पहले साल 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के समय रखा गया था। जब उधमपुर-श्रीनगर-बारामुला रेल लिंक परियोजना शुरु की गई थी, जिसका उद्देश्य कश्मीर घाटी को पूरे भारत से जोड़ना था। साल 2004 के बाद पुल की डिजाइनिंग शुरु हुई और 2008 तक डिजाइन को फाइनल करके निर्माण कार्य शुरु हो गया। लेकिन कभी भू-स्खलन, कभी सुरक्षा खतरे, कभी स्थानीय प्रतिरोध और कभी कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के कारण इस पुल के निर्माण में बार-बार बाधाएं आती रहीं।
लेकिन 2017 में मोदी सरकार ने इसे दोबारा शुरू कराया और 20 वर्षों में आखिर यह अद्वितीय पुल बनकर तैयार हो गया। इस पुल के निर्माण में भारतीय रेलवे की इंजीनियरिंग शाखा ने अपनी सारी प्रतिभा झोंक दी है। इस पुल पर 30 हजार मीट्रिक टन स्टील का इस्तेमाल हुआ है। यह स्टील विशेष मौसमरोधी सामग्री और आधुनिक तकनीकी का कमाल है। इस पुल परियोजना में पिछले 900 दिनों से 24 घंटे काम हो रहा था और इसके निर्माण में भारत की कई इंजीनियरिंग कंपनियों ने अतिरिक्त रूप से सहायता दी है। सैन्य विशेषज्ञ संस्थान डीआरडीओ और आईआईटीज विशेष रूप से शामिल रही हैं।
चिनाब नदी पर बना यह पुल अभियांत्रिकी के इतिहास की अगर अभूतपूर्व उपलब्धि है, तो इसके कई कारण हैं। एफिल टावर से भी ज्यादा ऊंचा यह पुल 8।0 तीव्रता तक के भूकंप के झटके को आसानी से सह लेगा और 260 किलोमीटर प्रतिघंटे की हवाएं चलेंगी, तो भी इसका बाल बांका नहीं होगा। अर्धचंद्राकार यानी आर्च शेप का यह पुल दुनिया की अत्यंत जटिल संरचनाओं में गिना जाएगा। यह मेक इंडिया का एक चमकदार उदाहरण है। इस पुल के निर्माण में जो स्टील और तकनीक इस्तेमाल की गई है, उससे भी भारत का मान बढ़ा है। इस पुल की निगरानी और मेंटेनेस के लिए अत्याधुनिक सेंसर और डिजिटल टूल्स का इस्तेमाल किया जाएगा।
लेख- नरेंद्र शर्मा के द्वारा