27वें प्रयास में 12वीं पास करने की धुन (सौजन्य: सोशल मीडिया)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, चाहे कितने ही बार असफल हो जाओ, प्रयत्न करना मत छोड़ो। ट्राई-ट्राई अगेन ! कभी न कभी सफलता तुम्हारे कदम चूमेगी। गुजरात के नवसारी जिले के तलोध गांव के सरपंच नील देसाई 26 बार 12वीं की परीक्षा में फेल हो चुके हैं। उनकी उम्र 52 साल हो चुकी है, लेकिन फिर भी बार-बार परीक्षा देकर 12वीं पास करने की कोशिशों में जुटे हैं।’ हमने कहा, ‘कहावत है- बूढ़े तोते क्या राम-राम पढ़ेंगे ! जब नौजवान थे, तब 12वीं पास नहीं कर पाएं, अब प्रौढ़ावस्था में कौन-सा तीर मारेंगे? क्या उन्हें बच्चों के साथ बैठकर 12वीं का इम्तेहान देने में शर्म नहीं आती?
दिमाग नहीं चलता इसीलिए तो 26 बार अपीयर होकर भी 12वीं पास नहीं कर पाएं। हमें तो वह मंदमति या जड़मति मालूम पड़ते हैं।’ पड़ोसी ने कहा, ‘यह आपकी गलतफहमी है निशानेबाज ! पहले तो कहावत है- करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान, रस्सी आवत-जात के सिल पर पड़त निशान ! इसका अर्थ है कि कुएं से पानी खींचते समय रस्सी की रगड़ से पत्थर पर भी निशान पड़ जाता है। ऐसे ही प्रयत्न करने से मंद बुद्धि वाला भी ज्ञानी बन जाता है। कवि कालिदास जिस वृक्ष की डाल पर बैठे थे, उसे ही काट रहे थे। सरस्वती की कृपा हुई तो महाकवि बन गए।
जहां तक सरपंच नील देसाई की बात है, वह मंदमति नहीं, बल्कि विद्वान और उच्च विद्या विभूषित हैं। उन्होंने 1991 में 12वीं की परीक्षा में फेल हो जाने के बाद 10वीं के प्रमाणपत्र के आधार पर डिप्लोमा इलेट्रिक इंजीनियरिंग किया। 2005 में नियम बना कि डिप्लोमावाले डिग्री की पढ़ाई कर सकते हैं, तो देसाई ने बीएससी फिर एमएससी किया और बाद में थीसिस लिखकर पीएचडी की डिग्री भी हासिल कर ली।
उनके मन में अब भी कसक है कि 26 बार परीक्षा देकर भी वह 12वीं पास नहीं कर पाएं, इसलिए अगले वर्ष 27वीं बार परीक्षा देंगे।’ हमने कहा, ‘जब डॉक्टरेट हासिल कर ली, तो 12वीं की परीक्षा देने में कौन-सा तुक है? नील देसाई यूजलेस काम कर रहे हैं। जब हिमालय पर चढ़ गए तो टेकड़ी पर चढ़ने की जिद क्यों? हवाई जहाज के पायलट को मारुति 800 चलाना सीखने की क्या जरूरत ?’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, यह देसाई की धुन या लगन है। 12वीं की परीक्षा को लेकर उनके मन में गीत गूंज रहा है- हम होंगे कामयाब एक दिन !’