पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, गवर्नर को अपना गर्व राजभवन तक ही सीमित रखना चाहिए. अपनी भावनाओं के उबाल को प्रधानमंत्री तक ले जाने की गलती भूलकर भी नहीं करनी चाहिए. उन्हें इतनी समझ होनी चाहिए कि पत्थर से सिर टकराने से अपना ही माथा लहूलुहान होगा. जिस रास्ते में कांटे लगने का अंदेशा है, उसे छोड़कर अलग रास्ते से जाने में समझदारी है. जिस इंसान में विवेक है, वह पानी में रहकर मगर से बैर नहीं करता.’’
हमने कहा, ‘‘आप इतनी भूमिका क्यों बांध रहे हैं? साफ-साफ बताइए, क्या हुआ? देश के राज्यों में 2 दर्जन से ज्यादा गवर्नर हैं. कुछ अपनी अधिक उम्र के भार के साथ अन्य राज्य का अतिरिक्त प्रभार भी संभाल रहे हैं. बंगाल के गवर्नर जगदीप धनखड़ और महाराष्ट्र के गवर्नर भगतसिंह कोश्यारी का अपने-अपने राज्यों की सरकार से टकराव चलता रहता है. हमें बताए कि आप किस राज्य के राज्यपाल की व्यथा-कथा सुना रहे हैं?’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक कृषि कानूनों को लेकर लगातार मोदी सरकार पर मुखर रहे हैं. किसान आंदोलन के समय उन्होंने केंद्र के रवैये की आलोचना की थी लेकिन कृषि कानून वापसी के बाद उन्होंने पीएम मोदी की तारीफ भी की थी. अब मलिक ने मोदी को घमंडी बताया है.
हरियाणा के दादरी में किसानों के एक कार्यक्रम में सत्यपाल मलिक ने कहा कि मैं जब किसानों के मामले में प्रधानमंत्री मोदी से मिलने गया था तो वो बहुत घमंड में थे. उनसे मेरी 5 मिनट में लड़ाई हो गई. जब मैंने उनसे कहा कि हमारे 500 लोग मर गए हैं तो मोदी ने कहा कि मेरे लिए मरे हैं क्या? मैंने कहा, आपके लिए ही तो मरे हैं जो आप राजा बने हुए हो.’’
हमने कहा, ‘‘राज्यपाल को प्रधानमंत्री के सामने बड़े बोल नहीं बोलने चाहिए लेकिन लगता है कि जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल पद से हटाए जाने के बाद से सत्यपाल मलिक चिढ़े हुए हैं. ऐसी बातें करेंगे तो मेघालय से भी उनकी छुट्टी कर दी जाएगी. सत्यपाल को समझना चाहिए कि सत्यं वद, प्रियं वद! ऐसा सत्य बोलो जो कानों को प्रिय लगे, कटु सत्य बोलने से रिश्ते बिगड़ जाते हैं. राज्यपाल के लिए जरूरी नहीं कि हर समय ‘सत्यपाल’ बना रहे.’’