मानसून का 12 दिन पहले असर (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, आप बेखबर रह गए और यहां मानसून 12 दिन पहले आ धमकने की खबर बन गई। जून की बजाय मानसून वेरी-वेरी सून मई में ही आ गया। उसे केरल से कोकण पहुंचते जरा भी देर नहीं लगी। मौसम विभाग कहता है कि इस बार मानसून जोरदार बैटिंग करेगा। वह हर तरह की फील्डिंग को तहस नहस कर देगा। राज्य के अधिकांश हिस्से में अतिवृष्टि की संभावना है। इस बारिश ने नौतपा का बैंड बजा दिया।’ हमने कहा, ‘आप जरूरत से ज्यादा उत्साहित हो रहे हैं।
श्रीनिवास औंधकर नामक मौसम विशेषज्ञ की राय है कि इस समय की वर्षा मानसून नहीं है। जून की शुरूआत में चित्र स्पष्ट होगा। मौसम विभाग ने मानसून की घोषणा करने में जल्दबाजी कर दी। अभी जो बारिश हुई है वह अरब सागर में आए चक्रवात की वजह से हुई है। कृषि विभाग ने भी किसानों को सतर्क कर दिया है कि बीज बोने की जल्दी न करें क्योंकि बीच में कुछ दिनों तक मौसम सूखा रह सकता है।’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज आपकी बातें उम्मीदें तोड़नेवाली हैं। क्या मानसून किसी की मर्जी का गुलाम है? क्या उसे बिफोर टाइम आने का हक नहीं है? जब आ ही गया है तो उसकी खातिरदारी कीजिए। नया रेनकोट या छाता खरीद लीजिए।
यदि फिर भी बारिश में भीग गए तो सर्दी-खांसी की दवा का इंतजाम पहले से करके रखिए। मानसून के सम्मान में फिल्मी गीत गाइए- आज रपट जाएं तो हमें ना उठइयो, हमें जो उठइयो तो खुद भी फिसल जइयो।’ हमने कहा, ‘अच्छी बारिश से फसलें अच्छी होती हैं और महंगाई काबू में आती है। जिन इलाकों में बारिश की वजह से सड़कें झील बन जाती हैं वहां कागज की नाव छोड़कर अपने बचपन को याद कीजिए और जगजीतसिंह की गजल गाइए- वो कागज की कश्ती, वो बारिश का पानी। आपकी शास्त्रीय संगीत में रुचि है तो गाइए- बरखा बहार आई, रस की फुहार लाई! अब मानकर चलिए कि दिल्ली हो या देहरादून इस बार जमकर बरसेगा मानसून!’
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा