(डिजाइन फोटो)
यह हर्ष का विषय है कि महाराष्ट्र के 10 नए सरकारी मेडिकल कॉलेजों का प्रधानमंत्री मोदी ने ऑनलाइन उद्घाटन किया। ये कॉलेज मुंबई, अंबरनाथ, जालना, नाशिक, हिंगोली, अमरावती, बुलढाणा, गड़चिरोली, वाशिम व भंडारा में हैं। इससे राज्य की एमबीबीएस सीटों में 900 की वृद्धि हुई है। इतने पर भी चिंता इस बात को लेकर है कि इन कॉलेजों से निकलनेवाले डाक्टर किस गुणवत्ता के होंगे?
मुद्दा यह है कि न्यूनतम पात्रता मानकों को पूरा न कर पाने की वजह से राष्ट्रीय वैद्यकीय आयोग ने इन सभी कॉलेजों को अनुमति देने से इनकार कर दिया था। इतने पर भी इस आशय का शपथ पत्र देने पर इन कॉलेजों को मंजूरी दी गई कि वह न्यूनतम आधारभूत सुविधाओं और पढ़ाने के लिए प्राध्यापकों की व्यवस्था करेंगे।
इससे यह सवाल उठता है कि तब तक मरीजों और प्राध्यापकों के बिना वैद्यकीय शिक्षा कैसे दी जाएगी? राज्य में मेडिकल की पढ़ाई के प्रशासकीय कामकाज के सूत्र वैद्यकीय शिक्षा व संशोधन संचालनालय के पास हैं। इस समय यह हाल है कि पूर्णकालिक संचालक, सहसंचालक, अतिरिक्त संचालक, विभागीय उपसंचालक जैसे पद खाली पड़े हैं। मेडिकल कॉलेजों की बढ़ी हुई संख्या देखते हुए पर्याप्त प्रशासकीय मशीनरी नहीं है।
अभी राज्य के 25 में से 14 मेडिकल कॉलेजों में पूर्णकालिक डीन नहीं है। कुछ नियुक्तियां हुईं तो भी अधिकांश डीन को एक साथ 2 कालेजों की जिम्मेदारी सौंप दी गई। महाराष्ट्र में केईएम, जेजे, सायन, नायर व नागपुर मेडिकल कॉलेजों की लोकप्रियता उनके कुशल शिक्षकों की वजह से है।
अब 10 नए मेडिकल कॉलेज शुरू होने पर वहां प्राध्यापकों व सहयोगी प्राध्यापकों के कुल स्वीकृत पद 3,927 हैं। इनमें से 1,580 पदद रिक्त हैं। इसी तरह परिचारिका व टेक्नीशियन के 9,553 पदों में से 3,974 पद रिक्त हैं।
यह भी पढ़ें- BJP ने तोड़ा हरियाणा का चक्रव्यूह, कांग्रेस को समझना होगा ‘दिल्ली’ अभी दूर
पर्याप्त स्टाफ नहीं रहने से इसका दुष्परिणाम केवल चिकित्सा क्षेत्र ही नहीं बल्कि इन कॉलेजों से जुड़े अस्पतालों के मरीजों के इलाज व सेवासुश्रुषा पर भी पड़ेगा क्योंकि पढ़ानेवाले और इलाज करनेवाले डॉक्टर एक ही रहते हैं। इसी तरह पोस्ट ग्रेजुएशन करने आए डाक्टर भी मरीजों के इलाज की जिम्मेदारी संभालते हैं। जब इतने पद रिक्त हैं तो मरीजों का इलाज कौन करेगा?
उल्लेखनीय है कि गत 2 अक्टूबर 2023 में नांदेड के शासकीय मेडिकल कॉलेज में 24 घंटे में 24 मौत और ठाणे के मेडिकल कॉलेज में एक रात में 18 मरीजों की मौत हुई थी। क्या इस घटना से सबक सीखा गया? यदि स्टाफ में मनुष्यबल अपर्याप्त रहेगा तो मरीजों की सही देखभाल के लिए डॉक्टर और नर्स उपलब्ध नहीं होंगे।
नया मेडिकल कॉलेज शुरू करने पर अनेक जिला अस्पताल उससे संलग्न कर दिए जाते हैं। वहां से मरीजों को रेफर कर भेजा जाता है इससे पेशेंट की संख्या बढ़ जाती है। 1999 में जब मेडिकल शिक्षा विभाग अलग किया गया तो उद्देश्य यह था कि मरीजों का इलाज करने के लिए डॉक्टरों की अलग टीम रखी जाएगी।
क्या यह व्यवस्था सफलतापूर्वक साकार हो पाई? कहा जाता है कि एक मेडिकल कॉलेज को 403 करोड़ रुपए दिए जाएंगे। शिक्षकों का वेतन तथा अन्य खर्च का इंतजाम इतनी कम रकम में संभव नहीं हो पाएगा। कॉलेज चलाने के लिए जरूरी प्रतिवर्ष 150 करोड़ रुपए का प्रावधान नहीं है। मेडिकल शिक्षा के लिए गत 5 वर्ष में मिली हुई निधि को देखते हुए इतने फंड की व्यवस्था कहां से होगी? एमबीबीएस की सीटें बढ़नी चाहिए लेकिन ऐसा करते समय व्यवस्थित नियोजन नहीं किया गया तो लक्ष्य प्रभावित होगा।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा