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Malegaon Blast Case Vedict: महाराष्ट्र के मालेगांव में साल 2008 में हुए ब्लास्ट मामले में साध्वी प्रत्रा और कर्नल पुरोहित समते सभी सातों आरोप बरी हो गए हैं। 17 साल बाद NIA की विशेष अदालत ने गुरुवार को इस केस में फैसला सुना दिया है। इस फैसले के आते ही तमाम सवाल आपके जेहन में धमाचौकड़ी करने लगे होंगे? ऐसा होना वाजिब भी है।
2008 के मालेगांव धमाकों में गुरुवार को अदालत का फैसला आया। एनआईए कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया है। इसमें पूर्व भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर समेत 7 लोग शामिल हैं। बताया जा रहा है कि कोई भी चश्मदीद अपने बयानों पर कायम नहीं रहा, जिसके चलते सभी आरोपियों को बरी करने का फैसला लिया गया।
इसके अलावा कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा है कि ये साबित नहीं हुआ कि बाइक में बम प्लांट किया गया। ब्लास्ट केस की जांच में कई गलतियां भी मिलीं। जज ने कहा कि मौके से फिंगर प्रिंट नहीं मिले। इसके अलावा बाइक साध्वी प्रज्ञा की थी ये साबित नहीं हुआ। कोर्ट ने कहा कि किसी को भी केवल शक के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।
कोर्ट ने इस मामले के सभी सातों आरोपियों को UAPA यानी गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, शस्त्र अधिनियम और अन्य सभी आरोपों से बरी कर दिया। जिसके बाद यह सवाल उठने लगे हैं कि यदि ये सभी आरोपी निर्दोष हैं तो मालेगांव ब्लास्ट का असली गुनहगार कौन है?
कोर्ट के फैसले में जांच एजेंसी पर सीधे सवाल उठाए गए हैं। अदालत ने साफ तौर पर जांच में गड़बड़ी की बात कही है। यानी इतने बड़े स्तर पर भी जांच एजेंसियां गलती करती हैं? जिसका एक परिणाम यह भी हो सकता है कि इस दुर्दांत आतंकी हमले के असली दोषी पकड़े ही न गए हों। या फिर सजा से बच गए हों?
खास बात यह है कि मालेगांव ब्लास्ट की जांच शुरुआत में महाराष्ट्र पुलिस ने की। फिर जब इसमें आतंकी एंगल सामने आया तो महाराष्ट्र ATS ने इसको आगे बढ़ाया। लेकिन अंततः केस को NIA यानी राष्ट्रीय जांच एजेंसी को सौंप दी गई। लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात रहा।
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ATS ने अपनी जांच में कहा था कि धमाके में जिसका इस्तेमाल वह वाहन प्रज्ञा ठाकुर के नाम पर रजिस्टर्ड था, और उन्होंने ही वाहन मुहैया कराया था। ATS ने यहा भी दावा किया था कि धमाके से पहले साजिश के लिए मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल और इंदौर समेत कुछ शहरों में कथित तौर पर कई बैठकें की गई थीं।
मालेगांव ब्लास्ट केस में फैसला आने के बाद मृतकों के परिजनों ने कहा कि यह फैसला सही नहीं है। इसके साथ ही उन्होंने ऊपरी अदालत यानी हाई कोर्ट जाने की बात कही है। अब देखना अहम होगा कि वह कब ऊपरी अदालत का दरवाजा खटखटाते हैं, और वह इस फैसले को लेकर क्या कुछ रुख अपनाएगी।