निकाय चुनाव रणनीति में महायुति अग्रणी (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: महाराष्ट्र में होनेवाले स्थानीय निकाय चुनावों में तैयारी के लिहाज से महाविकास आघाड़ी की तुलना में बीजेपी, शिवसेना (शिंदे) तथा राकांपा (अजीत पवार) की महायुति अधिक आगे दिखाई देती है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि जहां पर संभव है वहां युति की जाएगी और जहां युति नहीं हो पाएगी वहां मैत्रिपूर्ण चुनावी मुकाबला होगा। बीजेपी का 150 सीटों जीतने का लक्ष्य है। अजीत पवार की पार्टी का मुंबई में विशेष प्रभाव नहीं है लेकिन शिंदे सेना अधिक सीटों के लिए लड़ सकती है।
बीजेपी ने मुंबई महापालिका के चुनाव को गंभीरता से लिया है और मुख्यमंत्री चाहते हैं कि मुंबई का महापौर पद बीजेपी को मिले। बीजेपी मुंबई में किए गए विकास कार्य के बल पर वोट मांगेगी। दूसरी ओर उद्धव ठाकरे भी यह समझ गए हैं कि यदि इस बार मुंबई में उनकी पार्टी हार गई तो उसका बेड़ा गर्क हो जाएगा। उन्होंने मतदाता सूची में भारी गड़बड़ी का मुद्दा उठाकर चुनाव आयोग को निशाना बनाया है। मराठी और महाराष्ट्र के हित के नाम पर उद्धव व राज ठाकरे के एकत्र आने की संभावना बढ़ गई है। पिछले समय तीसरी भाषा के रूप में हिंदी पढ़ाए जाने की अनिवार्यता को चुनौती देने दोनों चेचेरे भाई साथ आए थे। इसके बाद से पिछले 3 महीनों में 6 बार दोनों की मुलाकात हो चुकी है। दोनों की पार्टियों के कार्यकर्ता संयुक्त कार्यक्रम करने लगे हैं।
उद्धव ठाकरे बार-बार कहते हैं कि हम एकत्र रहने के लिए एक साथ आए हैं लेकिन राज ठाकरे ने अभी तक खुलकर कुछ नहीं कहा है। वैसे वह हाल ही में सपरिवार उद्धव के घर गए थे। शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे के जीवनकाल में ही राज ठाकरे शिवसेना से अलग हो गए थे। 2009 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी मनसे के 13 विधायक जीते थे। इसके बाद 2014 और 2019 में सिर्फ 1-1 सीट जीती थी। 2024 के चुनाव में मनसे को एक भी सीट नहीं मिल पाई। राज ठाकरे के पुत्र अमित ठाकरे भी चुनाव हार गए थे। उनके पास हिंदी विरोधी और परप्रांतीयों के महाराष्ट्र आकर नौकरी करने के विरोध के अलावा कोई नीतिगत मुद्दा भी नहीं है। देखना होगा कि उद्धव ठाकरे मनसे के लिए कितनी सीटें छोड़ने को रोजी होते हैं।
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मुंबई महानगरपालिका में कुल 227 सीटें हैं। पिछले चुनाव में शिवसेना को 84 तथा बीजेपी को 82 सीटें मिली थीं। यदि महापौर पद हासिल करना है तो 114 नगरपार्षद चुनकर आने चाहिए। इसके लिए शिवसेना (उद्धव) को 130 सीटों पर लड़ना होगा। यदि महाविकास आघाड़ी की सहयोगी पार्टियों कांग्रेस और राकांपा (शरद पवार) के लिए भी सीटें छोड़नी होंगी तो फिर मनसे के लिए कितनी सीट बाकी रह जाएंगी? पिछले चुनाव में मनसे ने 25 सीटों पर मनपा चुनाव लड़ा था लेकिन एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। इतने पर भी मनसे को 4 प्रतिशत वोट मिले थे मनसे का दावा है कि वह 90 वार्ड में निर्णायक साबित हो सकती है। यदि मनसे को उसकी इच्छानुसार पर्याप्त सीटें नहीं दी गई तो वह अकेले चुनाव लड़ सकती है या बीजेपी के साथ युति कर सकती है। कांग्रेस भी मनसे के साथ गठजोड़ नहीं करना चाहती क्योंकि ऐसा करने से बिहार चुनाव में उसे नुकसान उठाना पड़ सकता है।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा