महाआघाड़ी बनी महापिछाड़ी (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, महाराष्ट्र में अत्यंत करारी हार के बाद महाआघाड़ी महापिछाड़ी बनकर रह गई। उसके नेताओं को ऐसा झटका लगा कि अब भी थरथरा रहे होंगे। उनकी हालत यह हो गई कि दिल के अरमां आंसुओं में बह गए, हम भरी दुनिया में तन्हा रह गए! कोई हमदम ना रहा कोई सहारा ना रहा, हम किसी के ना रहे, कोई हमारा ना रहा!’’ हमने कहा, ‘‘आप महाआघाड़ी के प्रति सहानुभूति व्यक्त कर रहे हैं या उसकी दुर्दशा का मजाक उड़ा रहे हैं? ऐसा रवैया ठीक नहीं है।
किसी घायल को चोट पर लगाने के लिए मलहम देना चाहिए, न कि नमक-मिर्च छिड़कना चाहिए।’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, हमारे सहानुभूति जताने से सियासत की तस्वीर बदलनेवाली नहीं है। बहुमत और अल्पमत का फैसला जनमत करता है। लाड़की बहनों ने महायुति से भरपूर लाड़ किया। महाआघाड़ी की पार्टियों के कार्यकर्ताओं में समन्वय की कमी थी। सीटों के बटवारे को लेकर भी मतभेद उभरे। धनशक्ति में भी महाआघाड़ी पीछे थी। बीजेपी के पास तावड़े थे इसलिए पार्टी ताव खाने और दिखाने में आगे थी।
जब देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि मैं लौटकर आऊंगा तो हमें वह गीत याद आ गया- मुझे तुम याद रखना और मुझ को याद आना तुम, मैं वापस लौट के आऊंगा मुझे ना भूल जाना तुम!’’ हमने कहा, ‘‘अपनी प्रबल इच्छाशक्ति या विलपावर की वजह से ही ‘देवाभाऊ’ ने शेर सुनाया था- मेरा पानी उतरता देख, मेरे किनारे पर घर मत बसा लेना, मैं समंदर हूं, लौटकर वापस आऊंगा।’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, सबसे ज्यादा ट्रेजेडी महाराष्ट्र के दिग्गज और अत्यंत अनुभवी नेता शरद पवार के साथ हुई। 86 सीटों पर चुनाव लड़ा और 10 सीट जीत पाए। उनकी तुतारी या तुरही बज नहीं पाई। भतीजा भारी पड़ गया।
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अजीत पवार ने उनसे चौगुनी यानी 41 सीटों पर जीत कर दिखा दिया कि कौन सा पवार ज्यादा पावरफुल है। छोटी पार्टियों और निर्दलीयों का भट्ठा बैठ गया।’’ हमने कहा, ‘‘बीजेपी की बंपर जीत महाविकास आघाड़ी की तीनों पार्टियों पर भारी पड़ी। बीजेपी ने अकेले 132 सीटें जीतीं जबकि आघाड़ी 50 से भी कम सीटों पर सिमट गई। भगवा ही अगुआ साबित हुआ। अब आप कह सकते हैं- बीजेपी की बल्ले-बल्ले!’’