उच्च शिक्षा क्षेत्र में महाराष्ट्र पीछे क्यों (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: भारत के उच्च शिक्षा संस्थानों व विश्वविद्यालयों का राष्ट्रीय स्तर पर क्रमवार मूल्यांकन घोषित किया गया जिसमें महाराष्ट्र फिर पिछड़ गया। एक समय वह भी था जब शिक्षा क्षेत्र में महाराष्ट्र अन्य राज्यों की तुलना में अग्रणी था। एनआईआरएफ के अनुसार महाराष्ट्र और तमिलनाडु की आपस में तुलना नहीं की जा सकती। इसे देखते हुए पता लगाया जाना चाहिए कि तमिलनाडु की शिक्षा नीति क्या है? वहां अध्यापन के संसाधन, रिसर्च, स्नातकों की गुणवत्ता, सर्वसमावेशकता आदि का अध्ययन कर देखा जा सकता है कि तमिलनाडु आगे क्यों है? सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय अ.भा. स्तर पर 2021 में 20वें क्रमांक पर था जो अब 91वें क्रमांक पर आ गया। कभी यह विश्वविद्यालय देश की 10 टॉप यूनिवर्सिटी में एक माना जाता था। अध्यापन के स्तर में सुधार अत्यंत आवश्यक है।
इसके लिए अध्यापन कौशल में निपुण ज्ञानी शिक्षक चाहिए। आज महाराष्ट्र में स्थिति सुखद और संतोषजनक नहीं है। राज्य के अधिकांश विश्वविद्यालयों में आधे से अधिक शिक्षकों के पद रिक्त पड़े हैं। सावित्रीबाई फुले विश्वविद्यालय में 250 से अधिक पद खाली हैं। ऐसी हालत में विद्यार्थी कैसे शिक्षा ग्रहण करेंगे? आंशिक या पार्ट-टाइम शिक्षक रखकर काम चलाया जा रहा है जो कभी भी पूर्णकालिक शिक्षक की कमी पूरी नहीं कर सकते। भरपूर शिक्षा शुल्क वसूलने के बाद भी विश्वविद्यालय खर्च बचाना चाहते हैं और फुल टाइम प्राध्यापकों की नियुक्ति नहीं करते। प्राध्यापकों की नियुक्ति में भी राजनीति आ जाती है। निजी संस्थानों में नियुक्ति व पदोन्नति में भी पैसे का खेल होता है। योग्य व्यक्ति भी बेरोजगार रहने की बजाय कम वेतन पर काम करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। यदि अयोग्य व्यक्ति की नियुक्ति हुई तो अध्यापन की गुणवत्ता पर विपरीत असर होता है।
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रिसर्च के स्तर में भी गिरावट आ जाती है। राष्ट्रीय स्तर के वर्गीकरण में महाराष्ट्र के सिर्फ 3 कॉलेजों का समावेश हो पाना चिंताजनक है। इंजीनियरिंग से लेकर लॉ कॉलेज तक में महाराष्ट्र की स्थिति संतोषजनक नहीं है। राज्य में जो भी कॉलेज आगे पाए गए हैं, वह मुंबई और पुणे के हैं। उपराजधानी नागपुर, अमरावती और वर्धा के इक्के-दुक्के कॉलेज हैं। इससे यही साबित होता है कि स्तरीय शिक्षा मुंबई व पुणे तक ही सीमित है। दूसरी ओर आईआईटी, आईआईएम एम्स, आयसर, आईआईएससी का स्तर ऊंचा है। उन्हें सरकार से पर्याप्त आर्थिक सहायता मिलती है। उन पर संलग्न महाविद्यालयों का बोझ नहीं है। शिक्षक-विद्यार्थी अनुपात भी सही है। वहां रिसर्च को प्रोत्साहन दिया जाता है। पिछले कुछ वर्षों से शासकीय महाविद्यालय पिछड़ रहे हैं जबकि निजी क्षेत्र की नामांकित शिक्षा संस्थाएं आगे बढ़ रही हैं। अब सरकार को सोचना होगा कि महाराष्ट्र को शिक्षा क्षेत्र में पुन: कैसे अग्रणी बनाया जाए।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा