राज्य में गीले अकाल की घोषणा क्यों नहीं (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: मराठवाडा और विदर्भ के कुछ जिलों सहित अनेक स्थानों पर अतिवृष्टि और बाढ़ के बाद राज्य सरकार पीड़ितों को राष्ट्रीय मानदंडों की तुलना में कम मुआवजा दे रही है। पहले भारी वर्षा और बाढ़ से मृत व्यक्ति के परिजनों को 4 लाख रुपए तथा घर बह जाने पर प्रति परिवार 5,000 रुपए की सहायता दी जाती थी। 2024 में नियमों में सुधार किया गया जिसके अनुसार तत्काल मदद के रूप में 10,000 रुपए दिए जाते हैं। असिंचित क्षेत्र के लिए प्रति हेक्टर 8500, बागायत फसलों के लिए 17,000 रुपए, बहुवार्षिक फसलों के लिए 22,500 रु। दर निश्चित की गई है। मुआवजा दर कम क्यों की गई, यह पूछे जाने पर वित्तमंत्री अजीत पवार ने कहा कि पैसों का दिखावा नहीं किया जा सकता।
विपक्ष ने मांग की है कि शक्तिपीठ महामार्ग का काम रद्द कर वह निधि किसानों को दी जाए। सांगली-कोल्हापुर की बाढ़ के दौरान जिस तरह अलग से निधि दी गई थी वैसी ही विशेष निधि अभी दी जाए। अनेक स्थानों में तालाब फूट गए हैं। स्कूलों, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की दीवारें टूट गई हैं। रेल मार्ग के नीचे की गिट्टी बह गई है। सिंचाई के पाइप और मोटर बह गए। 30 जिलों की 195 तहसीलों में खड़ी फसलें पानी में डूब गई। जिनमें कपास, सोयाबीन, मका, मूंगफली व दाल का समावेश है। अंगूर, अनार उत्पादक किसानों की फसल तबाह हो गई। मराठवाडा में 2500 से ज्यादा मवेशियों की मौत हो गई। मुर्गी व बकरियां भी बाढ़ में बह गईं। चारा गीला हो जाने से दूध उत्पादन घट गया।
इस तरह कृषि के पूरक व्यवसाय पर भी बुरा असर हुआ। इसलिए पशु खाद्य व पशु चिकित्सा उपलब्ध कराना भी जरूरी है। इसकी भरपाई हुए बिना किसान अपने पैर पर खड़े नहीं हो सकते। इसी वजह से गीला अकाल घोषित करने की मांग की जा रही है। हालत गंभीर होने से केंद्र से आर्थिक सहायता की मांग की गई है। आगे चलकर स्थानीय निकाय के चुनाव होनेवाले हैं। छत्रपति संभाजीनगर छोड़कर मराठवाडा के अन्य 7 लोकसभा क्षेत्रों में महायुति के सांसद नहीं हैं। इसलिए किसानों का रोष बढ़ना केंद्र व राज्य सरकारों के हित में नहीं होगा। फिलहाल 2215 करोड़ रुपए की निधि दी गई है जो काफी कम है इसलिए गीला अकाल घोषित कर उसके मानक के अनुसार निधि देने की मांग की जा रही है।
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विगत कुछ वर्षों से महाराष्ट्र में अतिवृष्टि, ओलावृष्टि, बेमौसमी बारिश से होनेवाला नुकसान बढ़ा है। फसल बीमा योजना कारगर साबित नहीं हुई है। यह केवल किसान व कृषि की समस्या नहीं है, बल्कि इसका ग्रामीण समाज, स्थानीय व कृषि बाजार तथा राज्य की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ेगा। बार-बार आनेवाले आसमानी संकट से खाद्यान्न सुरक्षा पर भी विपरीत असर पड़ सकता है।