महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (डिजाइन फोटो)
नवभारत डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, “निशानेबाज, महाराष्ट्र की राजनीति में मनसे को जितना महत्व दिया जाना चाहिए था, उतना नहीं दिया जा रहा है। लोग प्रधानमंत्री मोदी के मन की बात तो सुनते हैं लेकिन मनसे के प्रति उतना प्रेम नहीं जताते।”
हमने कहा, “महायुति में बीजेपी बॉस है जिसके साथ शिंदे की शिवसेना और अजीत पवार की राकां शामिल है। दूसरी ओर महाआघाड़ी में उद्धव की शिवसेना है। इसलिए मनसे को ठिकाना नहीं मिल पाया। मनसे के लोगों ने उत्तर भारतीयों की पिटाई की थी इसलिए वे भी इस पार्टी के साथ नहीं हैं। मनसे सिर्फ मुंबई, कोंकण, उत्तर महाराष्ट्र में है।”
पड़ोसी ने कहा, “निशानेबाज, मनसे प्रमुख राज ठाकरे अपने चाचा बाल ठाकरे के समान तीखा भाषण देते हैं। उनकी पर्सनालिटी उद्धव से ज्यादा प्रभावशाली लगती है फिर भी उन्हें व्यापक जनसमर्थन नहीं मिल पाया। मनसे प्रमुख को मन में कैसा लगता होगा!”
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हमने कहा, “मन की हर इच्छा पूरी नहीं होती। पुरानी फिल्मी हीरोइन गाती थी- मेरी बात रही मेरे मन में, कुछ कह न सकी उलझन में! एक बार अमिताभ बच्चन के हताश होने पर उनके पिता डा. हरिवंशराय बच्चन ने कहा था- मन का हो तो अच्छा, मन का न हो तो भी अच्छा! कभी ऊपरवाले की मर्जी इतनी प्रबल होती है कि मन की इच्छा पूरी नहीं हो पाती और मन मारकर रह जाना पड़ता है। जहां तक मन की बात है, वह सिर्फ मोदी कह सकते हैं। गीता में कहा गया है कि मन की गति अश्व से भी चंचल होती है परंतु अभ्यास से उसे वश में किया जा सकता है।”
हमने कहा, “शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति है जिसने मन को वश में किया हो। मेनका अप्सरा सामने आई तो विश्वामित्र का मन डोल गया। राजनीति में नेता हाथ मिलाते हैं लेकिन उनका मन नहीं मिलता। वोटों की मिलीजुली लूट के लिए पार्टियां बेमेल गठबंधन बनाती हैं। मनसे की किसी भी गठबंधन में ठीक से फिटिंग नहीं हो पाई फिर भी वह चुनाव में चांस ले रही है। देखो आगे क्या होता है, वक्त से पहले और भाग्य से ज्यादा किसी को नहीं मिलता।”
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा