(डिजाइन फोटो)
पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, इन दिनों मैं कुछ भुलक्कड़ हो गया हूं। याददाश्त साथ नहीं दे रही। समझ में नहीं आता क्या करूं?’’
हमने कहा, ‘‘करना क्या है! जो भूल गए सो भूल गए। भूलने की वजह से दिमाग का कचरा काफी कम हो जाता है। भुलक्कड़ आदमी टेन्शन फ्री रहता है। इस स्थिति का आनंद लीजिए। भूलना बड़े आदमी होने का लक्षण है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन को अल्जाइमर नामक भूलने की बीमारी हो गई थी। ऐसा ही स्मृतिभ्रंश हमारे देश में जसवंत सिंह, जार्ज फर्नांडीज जैसे नेताओं को हुआ था। उत्कृष्ट वक्ता रहे अटलबिहारी वाजपेयी कभी धाराप्रवाह
भाषण देते थे लेकिन बाद में उनके एक वाक्य से दूसरे वाक्य का फासला बढ़ गया। वे बीच में स्तब्ध हो जाते थे। क्या बोलना था, भूल जाते थे।’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, हम तो यह मानकर चलते हैं कि नेताओं को अपना वोट बैंक छोड़कर कुछ भी याद नहीं रहता। सरकार बन जाने के बाद वे अपने चुनावी वादे पूरी तरह भूल जाते हैं। आमतौर पर नेता परावलंबी होते हैं। उनका पूरा प्रोग्राम उनके पीए के पास रहता है। वे कितने बजे कहां जाएंगे, क्या खाएंगे-पिएंगे, कब सोएंगे, किससे कितनी देर मिलेंगे, सब कुछ उनका पीए देखता है। इस वजह से उनकी स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है। अधिकारियों को ही देखिए। जब बारिश सिर पर आ जाती है तब वह सड़कों को खुदवा कर जगह-जगह मलबे का ढेर लगा देते हैं। जनता कहां से कैसे जाएगी इसे भूल जाते हैं। नदी-नालों की सफाई का दिखावा करते हैं। वे जानते हैं कि बरसात आने से काम अधूरा रह जाएगा या हालत और भी बिगड़ जाएगी। उन्हें सरकारी फंड निकालना और ठेकेदारों से मिलीभगत याद रहती है, बाकी सब कुछ भूल जाता है।’’
हमने कहा, ‘‘भूलना हमारी पुरानी संस्कृति है। परम प्रतापी भरत के नाम पर देश का नाम भारतवर्ष पड़ा है। उनके पिता राजा दुष्यंत नंबर वन भुलक्कड़ थे। वह अपनी पत्नी शकुंतला को भूल गए थे। जब उसे दी गई राजमुद्रा वाली अंगूठी मछली के पेट से निकली तब उन्हें शकुंतला की याद आई। इसलिए आप भी भुलक्कड़ होने का अफसोस मत कीजिए। डॉ। हरिवंशराय बच्चन ने अपनी जीवनी के एक खंड का नाम लिखा था- क्या भूलूं क्या याद करूं!’’ लेख चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा