
आज का निशानेबाज (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, पुरानी कहावत है- पढ़ें फारसी बेचें तेल, ये देखो किस्मत का खेल! पढ़ाई-लिखाई से रोजगार का वास्ता नहीं होता। मजेदार बात यह है कि गुजरात में एमबीए चायवाला और मध्यप्रदेश में पत्रकार पोहेवाला है। इसके बाद जयपुर में एक वकील ने भोजनालय खोल लिया जिसका नाम है लायर्स किचन!’
हमने कहा, ‘बेरोजगार रहने की बजाय कुछ न कुछ उपक्रम या उद्योग करना चाहिए। पढ़-लिखकर लोग पैसा ही तो कमाते हैं। काम कुछ भी करो, कानून के दायरे में रहकर करो और मेहनत की कमाई से घर चलाओ। जब एमबीए करने पर उपयुक्त जॉब नहीं मिला तो एक नौजवान ने चाय की दूकान खोल ली। वह अपनी मैनेजमेंट की पढ़ाई का उपयोग कर इस कारोबार को पूरी प्लानिंग व प्रबंधन के साथ आगे बढ़ा सकता है और बिल गेट्स को चाय पिलानेवाले ‘डॉली चायवाले’ के समान चर्चित हो सकता है। इसे एक तरह का स्टार्टअप मान लीजिए।
इसी तरह पत्रकार नमक-मिर्च लगाकर ताजातरीन खबरें नहीं बना पाया तो तरीवाला पोहा बेचने लगा। यह एक प्रकार का डायवर्सिफिकेशन है। व्यक्ति का सफल होना महत्वपूर्ण है चाहे किसी भी क्षेत्र में हो। वकील ने मुकदमों की पैरवी की बजाय किचन खोलकर पुलाव और बिरयानी बनाना पसंद किया।’
पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, सफेदपोश लोगों को मेहनत का काम करना पड़ रहा है। उनकी एजुकेशन का उपयोग क्या हुआ?’ हमने कहा, ‘शिक्षा कुछ सार्थक काम करने का आत्मविश्वास देती है। कई लोग डिग्री लेकर भी नौकरी नहीं करते और अपने परिवार का पुश्तैनी कारोबार संभालने लगते हैं। कुछ डॉक्टर और इंजीनियर यूपीएससी की परीक्षा देकर आईएएस या आईसीएस बन जाते हैं। कुछ कम पढ़े-लिखे नेताओं को मंत्री बनते देखा गया है। किताबी ज्ञान की बजाय प्रैक्टिकल नॉलेज का अधिक महत्व है। जिसमें मन लगे, वह काम करना चाहिए।
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विदेश में ऐसा भी होता है कि कोई प्रोफेसर नौकरी छोड़कर अफ्रीका के जंगलों में घूमने निकल पड़ता है। अपने यहां भी कुछ सुशिक्षित सेवाभावी लोग आदिवासियों के बीच जाकर रहने लगे। जहां मन लगे वह काम करना चाहिए। भाग्य भी कोई चीज है तभी तो कहा गया है- हर किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता, कभी जमीं तो कभी आसमां नहीं मिलता।’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा






