नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग
नवभारत डेस्क: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने एलएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) समझौते पर जो मुहर लगाई है और भारत व चीन के संबंधों को बेहतर बनाने का जो संकल्प लिया है, वह स्वागतयोग्य है। ग्लोबल स्थिरता, शांति व प्रगति के लिए इन संबंधों का अधिक महत्व है। दोनों नेताओं की मुलाकात 16वें ब्रिक्स सम्मेलन की साइडलाइंस पर कजान (रूस) में हुई, जिसमें मोदी ने आपसी विश्वास, आपसी सम्मान व आपसी संवेदनशीलता पर बल दिया।
इसके जवाब में जिनपिंग ने कहा, ‘दोनों पक्षों के लिए महत्वपूर्ण है कि अधिक कम्युनिकेशन व सहयोग हो, मतभेदों को उचित तरीके से हैंडल किया जाये और बहुध्रुवीकरण को प्रोत्साहित करने में सहयोग किया जाये।’ इस मुलाकात के बाद का अगला चरण यह होगा कि सीमा वार्ता फिर से जारी होगी, दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक होगी और अगले वर्ष चीन को एससीओ की अध्यक्षता दिलाने के लिए भारत उसका पूर्ण समर्थन करेगा।
पिछले पांच वर्षों के दौरान मोदी व जिनपिंग की यह पहली द्विपक्षीय बैठक थी। इससे दोनों देशों के बीच कुछ बर्फ पिघली जरूर है, लेकिन दिल्ली को बीजिंग से हमेशा सतर्क रहना चाहिए और जो गंभीर फासले हैं, उन्हें कम करने का प्रयास करना चाहिए।
भारत की संवेदनशील टेक में चीनी उत्पादों पर निर्भरता है। चीन इस समय भारत का सबसे बड़ा व्यापार पार्टनर है। पिछले वित्त वर्ष में हमने चीन को 16।7 बिलियन डॉलर के गुड्स निर्यात किये थे और 101।7 बिलियन के गुड्स आयात किये थे। चीन के साथ जो यह 85 बिलियन डॉलर का व्यापार घाटा है, चीन विशाल पैमाने पर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष सब्सिडी प्रदान करता है, जिससे उसके उत्पाद बहुत सस्ते हो जाते हैं और भारतीय उत्पाद उससे मुकाबला नहीं कर पाते।
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स्ट्रेटेजिक सेक्टर्स से संबंधित चीजों में भी भारत चीनी आयात पर निर्भर है, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरा मंडराता रहता है। अगर चीन से आयात बंद हो जाये तो भारतीय मिसाइल रुक जाएंगी, भारत जो इलेक्ट्रॉनिक्स व ड्रग्स निर्यात करता है, उसकी हवा निकल जायेगी और रिन्यूएबल एनर्जी टारगेट्स पूरे नहीं हो पायेंगे।
चीनी किट्स एससीएडीए सिस्टम्स को चलाती हैं, जो बांधों के गेट्स और थर्मल पॉवर प्लांट्स में बॉइलर्स के अतिरिक्त सीएनसी फैक्ट्री उपकरणों को नियंत्रित करती हैं। जासूसी उपकरणों में भी चीन पर ही निर्भरता है।
आज चीन के पास संसार की सबसे बड़ी नौसेना है। चीन की नौसेना के पास 60 परमाणु व परम्परागत डीजल-इलेक्ट्रिक सबमरीन हैं। भारत के पास केवल दो परमाणु और 16 डीजल-इलेक्ट्रिक सबमरीन हैं। इसके अतिरिक्त क्रिटिकल टेक्नोलॉजी में चीन का दबदबा भारत के लिए गंभीर समस्या है।
बैटरी में चीन ग्लोबल लीडर है, विश्व बाजार में 70-90 प्रतिशत लिथियम-आयन बैटरी चीन की हैं। इसका अर्थ यह है कि भारत के सभी इलेक्ट्रॉनिक वाहन चीन की बैटरियों पर निर्भर हैं। गुजरात में टाटा व ताइवान की पीएसएमसी संयुक्त रूप से पहला चिप फैब स्थापित करने जा रहे हैं, लेकिन इसमें भी चीन का निवेश अधिक है।
इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मा व आवश्यक रसायनों में इस चीनी निर्भरता से कैसे बाहर निकला जाये? इसलिए भारत को महत्वपूर्ण उपकरणों में आत्म-निर्भरता हासिल करनी होगी। इसके लिए विशाल पैमाने पर खुद को अपग्रेड करना होगा और टेक, औद्योगिक क्षमता, व्यापार, मानव संसाधन आदि में निवेश करना होगा।
इसमें पहला कदम यह होना चाहिए कि उन सेक्टर्स व प्रोडक्ट लाइंस की पहचान की जाये जिनमें शुरू से अंत तक सप्लाई चेन भारत के नियंत्रण में हो। इसके अतिरिक्त निर्माण के लिए घरेलू क्षमता भी विकसित करनी होगी। बीजिंग से संबंध के संदर्भ में भारत को यह नहीं भूलना चाहिए कि चीन की बंद व्यवस्था है और जिनपिंग को ग्लोबल नियम फिर से लिखने की बुरी लत है।
इसका अर्थ यह है कि बीजिंग बिना नोटिस के नीतियों व योजनाओं को बदल सकता है। ध्यान रहे कि बीजिंग ने ताइवान के विरुद्ध बल न प्रयोग करने से स्पष्ट इंकार कर दिया है। अतः नई दिल्ली को जिनपिंग से सावधान रहते हुए अपनी ताकत में वृद्धि करनी चाहिए।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा