संविधान संशोधन बिल (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: राजनीति का अपराधीकरण एक बड़ी समस्या है।इससे छुटकारा पाने के लिए जो भी उपाय किए जा सकते हैं वह करने होंगे। इसके लिए लोकसभा में बिल लाया गया जिसके अंतर्गत गंभीर आरोपों से घिरे और 30 दिन जेल में रहे मंत्री, मुख्यमंत्री को पद से हटाने का प्रावधान है, प्रधानमंत्री भी इसमें अपवाद नहीं हैं। माना जाता है कि इस विधेयक के निशाने पर अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी जैसे विपक्ष के नेता हो सकते हैं। ईडी द्वारा शराब घोटाले में गिरफ्तार किए जाने पर भी केजरीवाल ने सीएम पद नहीं छोड़ा था बल्कि जेल से सरकार चलाने का प्रयोग किया था। जब इसमें सफलता नहीं मिली तो आतिशी मर्लेना को मुख्यमंत्री पद पर मनोनीत कर दिया था।
गिरफ्तारी के बाद भी मंत्री पद नहीं छोड़नेवालों में महाराष्ट्र, बंगाल व तमिलनाडु के नेताओं का समावेश रहा है। जेल जाने के बाद भी तमिलनाडु के सेंथिल बालाजी मंत्री पद नहीं छोड़ रहे थे। उन्हें इस्तीफा देने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने बाध्य किया। इन घटनाओं की पृष्ठभूमि को देखते हुए सरकार ने यह विधेयक लाया।इसका उद्देश्य यह बताया गया कि राजनीति से अपराध का पूरी तरह निर्मूलन करना है। दूसरी ओर यह भी सच है कि सरकार ने विगत कुछ वर्षों में सरकारी जांच एजेंसियों का इस्तेमाल राजनीतिक कारणों से किया। कोई भी पार्टी जब चुनाव के लिए उम्मीदवार का चयन करती है तो उसका चरित्र व कार्यकलाप न देखते हुए जीतने की क्षमता देखती है।
वर्तमान लोकसभा के 543 सांसदों में से 251 सदस्य आपराधिक बैकग्राउंड के हैं। इनमें से 27 को अदालत ने दोषी करार दिया है। 251 में से 170 सांसदों पर हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण, महिलाओं का शोषण जैसे गंभीर आरोप दर्ज हैं केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी के कुल सांसदों में से 39 प्रतिशत आपराधिक पृष्ठभूमि के हैं। कांग्रेस में ऐसे सांसद 49 प्रतिशत हैं। मोदी सरकार ने पिछले 11 वर्षों में विपक्षी दलों के मुख्यमंत्री, मंत्री तथा विरोधी पार्टियों के नेताओं के खिलाफ ईडी का राजनीतिक इस्तेमाल किया। सुप्रीम कोर्ट ने इसे लेकर ईडी को फटकार भी सुनाई लंबे समय तक लोगों को जेल में रखने और चार्जशीट पेश करने में विलंब के अलावा केवल 10 प्रतिशत मामलों में आरोप सिद्ध कर पाने के लिए जांच एजेंसी को आड़े हाथ लिया।
इतने पर भी 130वें संविधान संशोधन विधेयक से ईडी को पुन: ताकत मिलेगी। विपक्ष और क्षेत्रीय पार्टियों पर इससे दबाव आएगा। जो नेता 30 दिन जेल में रहा वह पद के लिए अयोग्य हो जाएगा।विपक्ष की दलील है कि न्यायशास्त्र यह कहता है कि जब तक अपराध सिद्ध न हो जाए, व्यक्ति बेगुनाह माना जाता है। जनता चाहती है कि पुलिस जांच में राजनीतिक हस्तक्षेप न किया जाए, एक कानून बदल देने से व्यवस्था नहीं बदल जाएगी। विपक्षी राज्य सरकारों को गिराने के लिए भी इसका इस्तेमाल किए जाने की आशंका हैइस बिल को लेकर केंद्र और राज्यों के बीच टकराव आ सकता है।
ये भी पढ़ें– नवभारत विशेष के लेख पढ़ने के लिए क्लिक करें
जांच एजेंसियों को इससे मनमानी की खुली छूट मिल जाएगी। इस संविधान संशोधन बिल को संसद में पास कराने के लिए केंद्र सरकार के पास दो तिहाई बहुमत नहीं है।राज्यसभा में कुल 239 सदस्य हैं जिनमें से सरकार को अपने पक्ष में 160 वोट चाहिए लेकिन एनडीए के पास वहां सिर्फ 132 वोट हैं।माना जा रहा है कि विपक्ष ने वोट चोरी और बिहार में मतदाता सूची संशोधन के मुद्दों पर सरकार को घेरने की कोशिश की है। विपक्ष के पैंतरे को भ्रष्टाचार विरोधी कदम के खिलाफ बताकर सरकार राजनीतिक लाभ उठाना चाहती है।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा