बिहार में राहुल-तेजस्वी की यात्रा का कितना प्रभाव (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: बिहार के सासाराम जिले से कांग्रेस नेता राहुल गांधी और राजद नेता तेजस्वी यादव के नेतृत्व में निकली मताधिकार यात्रा अब अपने अंतिम चरण में है।14 दिनों में यह यात्रा 24 जिलों के 50 मतदाता क्षेत्रों से होकर गुजरी और उसने 1300 किलोमीटर की दूरी तय की।इस दौरान तेजस्वी यादव ने इंडिया गठबंधन के मुख्यमंत्री प्रत्याशी के तौर पर अपना नाम घोषित किया।वह इससे पहले नीतीश कुमार की जदयू-राजद सरकार में उपमुख्यमंत्री रह चुके थे और बिहार विधानसभा में विपक्षी नेता रहे हैं।बिहार के पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल को नुकसान उठाना पड़ा था।
कुल 243 सीटों में से राजद ने 144 सीटों पर चुनाव लड़ा और कांग्रेस के लिए 70 सीटें छोड़ दी थी।कांग्रेस सिर्फ 19 सीटों पर जीत पाई थी।राजद 79 सीटें जीत कर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरा था।तब राजद, कांग्रेस और लेफ्ट की महाआघाड़ी को बहुमत का आंकड़ा हासिल करने में 12 सीटें कम पड़ गई थीं।इस बार राहुल गांधी की मताधिकार यात्रा के फलस्वरूप कांग्रेस की सीटें बढ़ सकती हैं।जहां तक तेजस्वी यादव की बात है, उनके सामने सिर्फ एनडीए की चुनौती नहीं है बल्कि उनके सगे भाई तेजप्रताप उनके खिलाफ हैं।इसके अलावा प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी भी उनके वोट काट सकती है।राहुल व तेजस्वी की मताधिकार यात्रा से व्यापक माहौल बना है।इसमें पिछड़ा वर्ग, दलित और अल्पसंख्यक साथ आए हैं।इसके पहले राष्ट्रीय जनता दल केवल मुस्लिम और यादव वोटों पर निर्भर था।
राहुल गांधी ने वोट चोरी को चर्चित मुद्दा बना दिया।मताधिकार यात्रा की प्रचार सभाओं में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन तथा सपा नेता अखिलेश यादव भी शामिल हुए।बिहार में 2015 में हुए विधानसभा चुनाव के समय आरक्षण के मुद्दे पर सरसंघचालक मोहन भागवत का बयान गूंजा था।तब लालूप्रसाद यादव और नीतीश कुमार की जोड़ी ने बीजेपी को मात दी थी।आरक्षण मुद्दे पर लालू ने तीखा जवाब दिया था।बाद में नीतीश और राजद का साथ छूट गया।नीतीश ने बीजेपी के साथ अपनी पार्टी का गठबंधन कर लिया।इस बार के चुनाव में बीजेपी अपनी ताकत बढ़ाना चाहती है।
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मतदाता सूची पुनरीक्षण के नतीजे उसके लिए अनुकूल हो सकते हैं।इसके बावजूद बिहार के चुनाव में कानून-व्यवस्था और बेरोजगारी के मुद्दे हावी रहेंगे।तेजस्वी यादव से मिलने वाले युवाओं ने उनके सामने बेरोजगारी का प्रश्न प्रमुखता से रखा।वोट चोरी के मुद्दे का राजनीतिक उपयोग हो सकता है लेकिन बिहार की जनता के सामने रोजी-रोटी व सुरक्षा का सवाल प्रमुख है।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा