पर्यटकों के होम स्टे से पहाड़ों की बरबादी (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: उत्तराखंड का नैनीताल हो या फिर देहरादून,हर जगह होम स्टे की क्रांति आई हुई है, सिर्फ शहर ही नहीं उत्तराखंड के छोटे-छोटे गांव भी होम स्टे क्रांति की चपेट में हैं जिस स्टैंडर्ड का होटल दो हजार में मिलता है, उसी स्टैंडर्ड का होम स्टे भी दो हजार का ही मिल रहा है होम स्टे में जाकर होटल से अधिक सुविधाएं मिल जाती हैं यह सब पिछले सात-आठ सालों में आई होम स्टे क्रांति का नतीजा है।इस क्रांति ने शहरों को भले ही नुकसान नहीं पहुंचाया हो लेकिन पहाड़ों के लिए यह बहुत खतरनाक बन चुकी है इस होम स्टे क्रांति के दुष्परिणाम क्या हो रहे हैं यह हाल में गंगोत्री के मार्ग के तीन खूबसूरत गांवों की बरबादी से देखा जा सकता है।
वीरान हो रहे गांवों को बचाने के लिए सरकार ने 2018 में होम स्टे योजना आरंभ की थी, सोच यह थी कि इससे पर्यटक गांवों का रुख करेंगे, इससे जो पहाड़वासी रोजगार की कमी के कारण शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। वह रिवर्स पलायन की ओर आकर्षित होंगे होम स्टे के लिए एक सोच यह भी थी कि इससे स्थानीय उत्पादों को नया जीवन मिलेगा जो पर्यटक यहां आएंगे। वह यहां की संस्कृति, खानपान, रहन-सहन, संस्कारों आदि से परिचित होंगे। यहां के पारंपरिक घरों को इसके जरिए खंडहर से बचाया जा सकता अनुदान क साथ हा तमाम सुविधाएं भा इसलिए सरकार ने होम स्टे के लिए इसमें अनुदान तथा सब्सिडी भी शामिल थी।
ओम पर्वत-आदि कैलाश यात्रा में जब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नहीं गए थे, तब तक वहां पर जाना बहुत मुश्किल था पर अब हालत यह है कि आदि कैलाश तक इतनी बेहतरीन सड़क बन गई है कि उस पर वाहन फर्राटा भरते हैं ओम पर्वत की स्थिति तो यह है कि इससे महज पचास मीटर नीचे धुंआ फैलाते डीजल वाहन खड़े होते हैं होम स्टे से प्रकृति को जो नुकसान हो रहा है, वह हाल में पराली या मुखवा में हुए विध्वंस ने दिखा ही दिया है प्रश्न यह है कि आखिर प्रकृति और पर्यटन बचें कैसे?
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विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को अपने मानकों पर सख्ती से काम करना होगा और होम स्टे के मालिकों को यह स्पष्ट करना होगा कि वह स्थानीय संस्कृति और सुविधाओं में ही रहे न कि शहरीकरण से पहाड़ों को नुकसान पहुंचाएं जब तक सरकार और स्थानीय निवासी मिलकर कोई काम नहीं करेंगे, तब तक धराली या केदारनाथ जैसी पटनाओं को रोक पाना मश्किल होगा।
लेख-मनोज वार्ष्णेय के द्वारा