पूर्व सीईसी कुरैशी ने सुनाई चुनाव आयोग को खरी-खरी (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: शायद यह पहला मौका है जब एक पूर्व मुख्य चुनाव शा आयुक्त ने वर्तमान मुख्य चुनाव आयुक्त को तीखे शब्दों में खरी-खरी सुनाई।पूर्व सीईसी शहाबुद्दीन कुरैशी ने राहुल गांधी के वोट चोरी के आरोप के संदर्भ में मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेशकुमार व चुनाव आयोग से कहा कि राहुल को असभ्य भाषा में प्रत्युत्तर देने की बजाय उनके आरोपों की जांच करें।इसी बीच चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से भी टकराव मोल लिया।
बिहार में 22 नवंबर के पहले नई विधानसभा का गठन होना आवश्यक है।इस दौरान राज्य में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) जारी है।चुनाव आयोग ने इस जटिल और काफी समय लेने वाले कार्य को जुलाई महीने में प्रारंभ किया, उसने यह नहीं सोचा कि सिर्फ 3 माह में यह काम कैसे पूरा हो पाएगा? मतदाताओं के नाम दर्ज करते हुए बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर) ने मनमानी की और लगभग 7.25 करोड़ मतदाताओं में से 65 लाख के नाम गायब कर दिए।लाखों जीवित वोटर को मृत बता दिया गया, ऐसे मतदाता गुहार करने सीधे सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।चुनाव आयोग आधार कार्ड को निवास का सबूत मानने को तैयार नहीं था।इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार निर्देश दिए।
सुको ने 14 अगस्त को निर्देश दिया कि हटाए गए सभी नाम 2 दिनों में घोषित किए जाएं, लेकिन चुनाव आयोग अपने हठवादी रवैये पर कायम रहा आयोग के वकील अश्विनी उपाध्याय ने दलील दी कि आजकल कोई भी फर्जी आधारकार्ड बनवा लेता है।हजारों बांग्लादेशी और रोहिंग्या भारत में घुसे हैं इसलिए आधार को सबूत न माना जाए।इस पर न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉय माल्या बागची ने कहा कि फिर तो राशन कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस भी फर्जी हो सकता है।इस पर वकील की बोलती बंद हो गई।चुनाव आयोग की प्रारूप सूची प्रकाशित होने पर नाम दर्ज करने या हटाने की मांग को लेकर लगभग 4 लाख आवेदन आए।नाम दर्ज करने की मांग वाले 27 फीसदी लोग 18 से 20 वर्ष आयु के हैं।
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58 प्रतिशत लोगों ने अपने नाम हटाने को कहा, सैकड़ों आवेदन दिवंगत मतदाताओं की ओर से किए गए हैं।इतने पर भी चुनाव आयोग अपनी कोई गलती नहीं मान रहा है।उसने एसआईआर की प्रक्रिया पूरे देश में चलाने की घोषणा की है।विपक्ष के इस आरोप को चुनाव आयोग ने गंभीरता से नहीं लिया कि आयोग वोट चोरी में बीजेपी की मदद कर रहा है बल्कि उसने विपक्ष से हलफनामा या प्रतिज्ञापत्र देने को कहा।स्वयं को संवैधानिक संस्था बताते हुए चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट की बात भी नहीं सुन रहा है।उनका कहना है कि मतदाता सूची का नवीनीकरण करना उसका संवैधानिक अधिकार है और इस संबंध में बार-बार निर्देश देकर उसके अधिकार में हस्तक्षेप किया जा रहा है।इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रवैया अपनाते हुए कहा कि हमें इस बात से मतलब नहीं है कि विशेष पुनरीक्षण मुहिम कब खत्म होगी या अंतिम मतदाता सूची कब प्रकाशित होगी।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा