(डिजाइन फोटो)
अमेरिका ने भारत के पूर्व रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के अधिकारी विकास यादव को खालिस्तानी उग्रवादी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश में शामिल होने का आरोप लगाते हुए मांग की है कि भारत उसे अमेरिका के हवाले कर दे। इसे लेकर बहस शुरू हो गई है कि क्या यादव को अमेरिका प्रत्यर्पित किया जा सकता है? यादव पर पहले ही भारत में डकैती और अपहरण के मामले चल रहे हैं।
कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार यादव का तब तक अमेरिका प्रत्यर्पण नहीं किया जा सकता जब तक भारत में उस पर चल रहे मुकदमों का फैसला और सुनाई गई सजा पूरी न हो जाए। जिन देशों के बीच प्रत्यर्पण संधि है वहां भी प्रत्यर्पण का मामला बहुत जटिल बना रहता है। भारत को बोफोर्स तोप सौदे के इतालवी दलाल क्वात्रोची की तलाश थी लेकिन उसे हमारी सरकार मलेशिया, लंदन और अर्जेंटीना से लाने में विफल रही
माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चौकसी भी आज तक भारत वापस नहीं लाए जा सके। प्रत्यर्पण के मामलों में दोनों देशों के पारस्परिक विश्वास के आधार पर निर्णय लिया जाता है। कई बार तो ऐसा होता है कि प्रत्यर्पण संधि भी काम नहीं आती। उदाहरण के तौर पर भारत और कनाड़ा ने 1987 में प्रत्यर्पण संधि पर हस्ताक्षर किए थे लेकिन 2002 से लेकर 2020 तक 18 वर्षों में केवल 6 भगोड़े अपराधियों को कनाडा से वापस भारत लाया जा सका। पुर्तगाल से काफी कूटनीतिक कोशिशों के बाद डॉन अबू सलेम को भारत लाया जा सका।
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उसमें भी पुर्तगाल की शर्ते माननी पड़ी कि अबू सलेम पुर्तगाली नागरिक है जिसे मौत की सजा नहीं दी जानी चाहिए। गत वर्ष कनाडा की एक संसदीय समिति ने मांग की कि भारत के साथ प्रत्यर्पण संधि रद्द कर दी जानी चाहिए क्योंकि यह अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों के अनुरूप नहीं है। इसके अलावा यह बात भी अहमियत रखती है कि किस व्यक्ति का प्रत्यर्पण मांगा जा रहा है।
जिन अभियुक्तों ने निम्न स्तर का अपराध किया है, उनके प्रत्यर्पण की मांग पर शीघ्र कार्रवाई की जाती है। इसके विपरीत जिनके अपराध रणनीति से जुड़े होते हैं, उन पर नरम रवैया अपनाया जाता है। मुंबई में 26 नवंबर 2008 को हुए आतंकी हमले के साजिशकर्ता डेविड कोलमैन हेडली के प्रत्यर्पण के भारत के निवेदन को अब तक लटकाकर रखा गया है क्योंकि हेडली अमेरिका की ड्रग एन्फोर्समेंट एजेंसी का भेदिया भी था।
विकीलीक्स मामले में अमेरिका ने जूलियस असांजे के प्रत्यर्पण की मांग की थी जिसे यूरोपीय देशों ने नहीं माना। उनकी दलील थी कि अमेरिका की जेल प्रणाली अमानवीय है। विजय माल्या ने भी लंदन में दलील दी थी कि भारत का तिहाड़ जेल उसके रहने लायक नहीं है। हांगकांग ने 2019 में कानून बनाया था जिसके मुताबिक भगोड़ों को चीन के हवाले करना था लेकिन इसके खिलाफ भारी विद्रोह आंदोलन हुआ था।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा