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नवभारत विशेष: एक देश एक चुनाव से निर्वाचन आयोग हो सकता है निरंकुश

भारत के दो पूर्व मुख्य न्यायाधीशों जेएस खेहर व डीवाई चंद्रचूड़ कहना है कि एक देश, एक चुनाव विधेयक को वर्तमान प्रारूप में पारित करने से चुनाव आयोग को निरंकुश शक्तियां मिल सकती हैं।

  • By आकाश मसने
Updated On: Jul 14, 2025 | 06:08 PM

निर्वाचन सदन (डिजाइन फोटो)

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नवभारत डिजिटल डेस्क: भारत के दो पूर्व मुख्य न्यायाधीशों जेएस खेहर व डीवाई चंद्रचूड़ इस बात से तो सहमत हैं कि एक देश, एक चुनाव विधेयक संविधान की बुनियादी संरचना पर खरा उतरता है, लेकिन उनका कहना है कि इसको वर्तमान प्रारूप में पारित करने से चुनाव आयोग को निरंकुश शक्तियां मिल सकती हैं। इसलिए इसमें अनेक संशोधनों की आवश्यकता है।

एक देश एक चुनाव विधेयक पर 6 घंटों से भी अधिक चली संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की बैठक में भारत के दोनों पूर्व मुख्य न्यायाधीशों ने इसके अनेक प्रावधानों पर आपत्ति व्यक्त की, जिन्हें जेपीसी के सदस्यों ने उठाया था। न्यायाधीश खेहर लगभग ढाई घंटे तक बोले और न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने तीन घंटे तक अपनी बातें रखीं। दोनों न्यायाधीशों का मत था कि इस विवादित विधेयक के विशिष्ट पहलू वैधता के पैमाने पर नाकाम हो जाएंगे। दोनों ने बहुत सारे संशोधनों का सुझाव दिया है।

‘एकदेश, एक चुनाव’ से संबंधित पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व वाले उच्चस्तरीय पैनल ने अपनी 18,000 से अधिक पृष्ठों वाली रिपोर्ट 14 मार्च 2024 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी थी, जिसमें से केवल 321 पृष्ठों को ही सार्वजनिक किया गया था। पैनल को सरकार के प्रत्येक स्तर के चुनाव एक साथ कराने की संभावना तलाशने की जिम्मेदारी दी गई थी। पैनल ने कहा था कि यह 2029 तक हो सकता है।

लोकसभा व विधानसभाओं के चुनाव साथ कराने में कोई खास चुनौती सामने नहीं आएगी, क्योंकि उचित संवैधानिक संशोधन को राज्य विधानसभाओं से अनुमोदन की आवश्यकता न होगी। लेकिन स्थानीय निकाय चुनावों व मतदाता सूचियों को भी साथ मिलाने में कम से कम आधी विधानसभाओं की अनुमति जरूरी होगी। पैनल ने कहा था कि लोकसभा व विधानसभाओं के चुनाव साथ कराने के 100 दिन के भीतर स्थानीय निकायों के चुनाव कराए जा सकते हैं।

विपक्षी पार्टियों ने किया विरोध

विपक्ष की अधिकतर पार्टियों ने इस रिपोर्ट का विरोध किया था और कहा था कि ‘एक देश, एक चुनाव’ का उद्देश्य संविधान को पूरी तरह से खत्म कर देना है। उनके अनुसार, यह प्रस्ताव ‘बुनियादी चुनावी सिद्धांतों और भारतीय संविधान के संघीय ढांचे के विरुद्ध है। उद्धव ठाकरे ने कहा था कि यह प्रस्ताव ‘तानाशाही की ओर उठाया गया कदम है’। कांग्रेस, तृणमूल, आप और माकपा ने भी इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था।

न्यायाधीशों ने दी अपनी राय

विधेयक के मुताबिक, चुनाव आयोग को अगर लगता है कि लोकसभा चुनाव के साथ एक राज्य में चुनाव नहीं हो सकते, तो वह उस राज्य में चुनाव स्थगित कर सकता है, लेकिन संबंधित विधानसभा का कार्यकाल लोकसभा के कार्यकाल के साथ समाप्त हो जाएगा।

ध्यान रहे कि इससे पहले भारत के एक अन्य मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने भी खंड 82ए (5) के तहत चुनाव आयोग को दी गई विशाल शक्तियों पर सवाल उठाया था। अब तक न्यायाधीश यू।यू, ललित सहित भारत के चार पूर्व मुख्य न्यायाधीश जेपीसी से अपने विचार साझा कर चुके हैं। 82ए (5) ऐसा खंड है जिसे अदालत में कानूनी चुनौती दी जा सकती है।

प्रस्तावित विधेयक में एक राज्य के चुनावी चक्र को अन्य राज्यों व लोकसभा के चक्र के अनुरूप करने का प्रावधान है। इस पर न्यायाधीश खेहर का कहना था कि अगर एक राज्य में आपात स्थिति, जिसका विस्तार एक साल तक हो जाता है, तो फिर उसके चुनावी चक्र का तालमेल अन्य राज्यों से कैसे बैठ सकेगा?

कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी दोनों न्यायाधीशों की इस बात से सहमत नहीं थे कि प्रस्तावित विधेयक संविधान की बुनियादी संरचना पर खरा उतरता है। उनके अनुसार, लोकतंत्र का अस्तित्व मतहीनता में नहीं है और केशवानंद भारती फैसले में स्पष्ट है कि लोकतंत्र संविधान के अनुच्छेदों के जरिए लागू होता है।

तिवारी ने कहा कि सभी राज्य बराबर हैं और एक का कार्यकाल केवल इसलिए कम कर देना कि उसका दूसरे से तालमेल बैठ जाए, उसे कमतर करना होगा जो कि संविधान की बुनियादी संरचना का उल्लंघन होगा।

लेख – डॉ. अनिता राठौर के द्वारा

Election commission autocratic due to one nation one election

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Published On: Jul 14, 2025 | 06:08 PM

Topics:  

  • Droupadi Murmu
  • Election Commission of India
  • India

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