(डिजाइन फोटो)
पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, दिल्ली हाईकोर्ट ने शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती द्वारा गोविंदानंद सरस्वती के खिलाफ दायर मानहानि के मुकदमे को लेकर परामर्श दिया कि संतों को मानहानि की चिंता नहीं करनी चाहिए। आपकी इस बारे में क्या राय है?’’
हमने कहा, ‘‘संत की महिमा अनंत होती है। साथ ही यह भी कहा गया है- जहं-जहं पड़े चरण संतन के तहं-तहं बंटाढार। संत आम तौर पर जोगी होता है इसलिए कहते हैं- रमता जोगी बहता पानी! हिंदू धर्म में संत हैं तो ईसाई धर्म में सेंट हैं जैसे सेंट मैथ्यू, सेंट फ्रांसिस, सेंट पीटर। मदर टेरेसा को भी पोप ने संत का दर्जा दिया था।’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, आपका निशाना सटीक नहीं है! कहां की बात कहां ले जाते हैं। इस तरह भटकने की बजाय एक मुद्दे पर फोकस कीजिए कि क्या संत अपनी मानहानि से दुखित और अपमानित महसूस करें या फिर मानहानि की बिल्कुल चिंता न करें?’’
यह भी पढ़ें:-ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांवड यात्रा का पुण्य, मन में आस्था, जोश और तारुण्य
हमने कहा, ‘‘कुछ संतों का स्वभाव उग्र होता है तो किसी का सौम्य! किसी को तुरंत मिर्ची लगती है तो कोई सहन या बर्दाश्त कर लेता है। कितने ही ऋषि-मुनि अपनी सेवा में कमी होने पर शाप दे दिया करते थे। दुर्वासा का स्वभाव ऐसा ही था। मुनि का वेष धारण करनेवाले परशुराम का आवेश और क्रोध सर्वविदित है। जब वह तमतमाए हुए जनक की सभा में आए थे तो वहां राम-लक्ष्मण और विश्वामित्र को छोड़कर सभी राजा-महाराजा भय से कांपने लगे थे। विश्वामित्र ने वशिष्ठ के पुत्र शक्ति की हत्या कर दी थी।’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, ऋषि-मुनि और संत में फर्क होता है। गीता में कहा गया है- निर्मानमोहा जितसंग दोषा, अध्यात्म नित्वा विनिवृत्त कामा। तात्पर्य यह कि मान और मोह की भावना से संत को दूर रहना चाहिए। रामचरित मानस में लिखा है- सम मान निरादर आदर ही, सब संत सुखी बिचरंत मही! जो संत है उसे अपमान या सम्मान को एक जैसा मानकर पृथ्वी पर भ्रमण करना चाहिए।’’
हमने कहा, ‘‘संत दूसरों को प्रवचन देते हैं लेकिन अपना अहं छोड़ नहीं पाते। इसीलिए हाईकोर्ट ने शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद को मानहानि की चिंता से मुक्त होने की सलाह दी।’’
लेख चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा