(डिजाइन फोटो)
सुरक्षा बलों ने आतंकियों के नापाक मंसूबों को नाकाम करने के लिए अपनी चौकसी अधिक मजबूत कर दी है ताकि 10 साल बाद जम्मू-कश्मीर विधानसभा के लिए हो रहे चुनाव बिना किसी बाधा के शांतिपूर्ण तरीके से सम्पन्न हो सकें। मतदान तीन चरणों में 18 व 25 सितंबर और 1 अक्टूबर को होगा। जम्मू-कश्मीर में चुनाव की घोषणा होते ही आतंकी हिंसा में तेजी आ गई है। पिछले लगभग एक माह के दौरान सुरक्षा बलों के भी 18 जवान शहीद हुए हैं। इस दौरान कम से कम 10 पाकिस्तानी आतंकियों को भी ढेर किया गया है। जम्मू-कश्मीर में किसी राजनीतिक दल या संगठन ने चुनाव बॉयकाट करने को नहीं कहा है, लेकिन लगता है कि पाकिस्तान चुनाव में अड़चन उत्पन्न करने का प्रयास कर रहा है।
चुनाव आयोग ने बिना कोई स्पष्ट कारण बताये दर्जनों नामांकन पर्चे रद्द कर दिए हैं। पहले चरण के मतदान के लिए 280 प्रत्याशियों ने अपने पर्चे दाखिल किये थे, जिनमें से 26 के नामांकन रद्द कर दिए। गये। जेल में बंद धर्मगुरु सरजन अहमद बरकाती का पर्चा भी खारिज कर दिया गया है। हालांकि चुनाव आयोग ने पर्चे रद्द करने का कारण नहीं बताया लेकिन लगता यह है कि प्रतिबंधित संगठनों से संबंध होने के कारण इन आजाद उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से रोका गया है, जिनमें से अधिकतर प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी के सदस्य हैं।
जम्मू-कश्मीर में 24 सीटों पर पहले चरण का मतदान 18 सितंबर को होगा। इन सीटों में से 16 दक्षिण कश्मीर में हैं और 8 जम्मू क्षेत्र में। मिलिटेंट्स, अलगाववादियों और उनके रिश्तेदारों ने नई राजनीतिक पार्टी का गठन किया है, जिसका नाम है तहरीके-अवाम और वह आजाद प्रत्याशियों के रूप में चुनाव लड़ने का प्रयास कर रहे हैं। यह उनके मुख्यधारा की राजनीति में शामिल होने के संकेत हैं, जिसे प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। पहले ये लोग चुनावों को बॉयकाट करने की घोषणा करते थे। अब ये लोग बुलेट की जगह बैलट की ओर आने की इच्छा व्यक्त कर रहे हैं। इनमें से अधिकतर के नामांकन फॉर्म बिना कारण बताये रद्द किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है।
जब 2018 में बीजेपी द्वारा समर्थन वापस लेने से महबूबा मुफ्ती की पीडीपी सरकार गिरी तब जम्मू-कश्मीर पूर्ण राज्य था। अब वह केंद्र शासित प्रदेश है, लद्दाख भी उससे अलग है और धारा 370 भी 5 अगस्त 2019 को निरस्त कर दी गई है। इस बात के कोई स्पष्ट संकेत नहीं हैं कि जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा कब दिया जायेगा। विधानसभा चुनाव अब इसलिए हो रहे हैं क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि 30 सितंबर तक चुनाव करा दिए जाएं। लोकतांत्रिक प्रक्रिया जम्मू-कश्मीर के लिए बेहतर रहेगी कि उसके पास अपनी चुनी हुई सरकार होगी, हालांकि अधिकतर शक्तियां लेफ्टिनेंट गवर्नर के सुपुर्द कर दी गई हैं, जिनकी नियुक्ति केंद्र सरकार की तरफ से होती है।
यह अच्छा संकेत है कि सभी महत्वपूर्ण पार्टियां जिनमें दोनों राष्ट्रीय पार्टियां (कांग्रेस व बीजेपी) और दोनों क्षेत्रीय पार्टियां (नेशनल कांफ्रेंस व पीडीपी) शामिल हैं, चुनाव में हिस्सा ले रही हैं। कुछ छोटी पार्टियां जैसे पूर्व कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद की डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी भी मैदान में है। पूर्व मिलिटेंट भी चुनावों में दिलचस्पी दिखा रहे हैं और कहीं से कोई बायकाट कॉल भी नहीं है। इंडिया ब्लॉक के घटक दल कांग्रेस व नेशनल कांफ्रेंस में सीटों का समझौता हुआ है। नेशनल कांफ्रेंस 51 सीटों पर, कांग्रेस 32, माकपा व पैंथर्स पार्टी एक एक सीट पर मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। पांच सीटों पर दोस्ताना मुकाबला होगा।
एनसी के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला गंदेरबल से चुनाव लड़ रहे हैं। दोनों बीजेपी व पीडीपी अकेले चुनाव लड़ रही हैं। बीजेपी को अपनी पहली सूची जारी करने के बाद, उसे तुरंत ही वापस लेनी पड़ी; क्योंकि टिकट वितरण को लेकर पार्टी के भीतर भयंकर विरोध था। अब उसने संशोधित सूची जारी की है। बीजेपी की कोशिश है कि वह किसी भी कीमत पर इंडिया गठबंधन को जम्मू-कश्मीर में बहुमत हासिल न करने दे। वह जम्मू क्षेत्र में अपने दम पर अच्छा प्रदर्शन करने की कोशिश कर रही है और घाटी से उसे सज्जाद लोन की पार्टी ने 5 सीटों और अपनी पार्टी ने 7 सीटों का वायदा किया है।
इन 12 सीटों की मदद से बीजेपी को लगता है कि वह जम्मू-कश्मीर में सरकार बना लेगी। लेकिन दूसरी ओर जम्मू-कश्मीर में लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को युवाओं व महिलाओं का जबरदस्त समर्थन मिला है, उससे इंडिया गठबंधन की स्थिति भी मजबूत लग रही है। राहुल गांधी को जिस प्रकार का समर्थन लद्दाख में मिला था, वैसा ही जम्मू-कश्मीर में मिल रहा है। लद्दाख में राहुल गांधी के दौरे के बाद कांग्रेस ने बीजेपी से लोकसभा सीट छीन ली थी। विभिन्न दलों की वर्तमान स्थिति को देखते हुए अनुमान यह है कि अधिकतर सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला होगा।
लेख विजय कपूर द्वारा