जाति जनगणना
नवभारत डिजिटल डेस्क: हर 10 वर्ष में होनेवाली जनगणना कोविड संकट की वजह से 2021 में नहीं हो पाई थी। अब केंद्र सरकार ने जनगणना के साथ जाति जनगणना कराने की भी घोषणा कर दी है। स्वतंत्र भारत में पहली बार ऐसा होगा। इसके पूर्व ब्रिटिश शासन में 1881 से 1931 तक जनगणना में जाति पूछी जाती थी। जातिगत विभाजन बढ़ने के डर से इसे 1951 से बंद कर दिया गया। जाति जनगणना इसलिए करना जरूरी माना गया क्योंकि आरक्षण की नीति लगभग 100 वर्ष पुराने आंकड़ों व अनुमानों पर आधारित है।
अब जातियों की गिनती से भारतीय समाज की तस्वीर सामने आएगी। केंद्र के लिए यह कदम इसलिए भी जरूरी हो गया क्योंकि बिहार, कर्नाटक व तेलंगाना की सरकारें अपने यहां जाति सर्वे करा चुकी हैं। बिहार में ओबीसी और ईबीसी की आबादी 63 प्रतिशत से ज्यादा निकली। इस वर्ष वहां विधानसभा चुनाव है। इसलिए राजनीतिक दृष्टिकोण बदला। इन राज्यों में जातिगत सर्वे में जुटाए गए प्रमाण और बढ़ते जनसमर्थन को देखते हुए उसकी उपेक्षा करना केंद्र के लिए संभव नहीं था।
पिछड़े वर्ग का दबाव निरंतर बढ़ रहा था। कांग्रेस नेता राहुल गांधी और राजद नेता लालू प्रसाद यादव लगातार जाति जनगणना की मांग कर रहे थे। कांग्रेस सहित विपक्ष ने इसे अपनी पुरानी मांग की जीत बताया है। ओबीसी की बढ़ती प्रासंगिकता के दौरान यह कदम बीजेपी के नीतिगत परिवर्तन को दर्शाता था। जब वीपी सिंह प्रधानमंत्री थे तब उन्होंने मंडल आयोग की पुरानी रिपोर्ट को सामने लाकर आरक्षण लागू किया था। अब तो जातिगणना में नए आंकड़े उपलब्ध हो जाएंगे।
इस बार जनगणना में 31 प्रश्न पूछे जाएंगे जिनमें 10वां प्रश्न एससी, एसटी व अन्य जाति का रहता था अब इसमें ओबीसी भी दर्ज होगा। 2011 की जनगणना किसी अधिनियम के तहत नहीं थी लेकिन इस बार यह संसदीय अधिनियम के अंतर्गत की जाएगी जिसमें जाति बताना अनिवार्य होगा। जाति तोड़ो आंदोलन चलाने वालों या सरनेम न लिखने वालों को भी अपनी जाति बतानी होगी। इसके लिए जनगणना कर्मियों को प्रशिक्षण दिया जाएगा।
यह काम बड़ा चुनौतीपूर्ण है क्योंकि देश में हजारों उपजातियां हैं। इनके राज्य या क्षेत्र विशेष में विशिष्ट नाम हैं। राजनीतिक तरीके से हेरफेर न हो, इसलिए कड़ी निगरानी और डेटा की पुष्टि करनी होगी। जाति जनगणना के बाद शिक्षा व रोजगार में आरक्षण नए सिरे से तय किया जा सकेगा। आरक्षण की वर्तमान अधिकतम सीमा 50% है जिस पर पुनर्विचार हो सकता है।
राजनीतिक बदलाव भी दिखेगा। पार्टियां जिस जाति की आबादी ज्यादा है उसे अधिक उम्मीदवारी देंगी। संभावना है कि इस वर्ष सितंबर से जनगणना शुरू की जा सकती है जिसके पूरा होने में1 वर्ष का समय लग सकता है। 2026 के अंत या 2027 की प्रथम तिमाही तक अंतिम आंकड़े आ सकते हैं।
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जाति जनगणना के बाद शिक्षा व रोजगार में आरक्षण नए सिरे से तय किया जा सकेगा। आरक्षण की वर्तमान अधिकतम सीमा 50% है जिस पर पुनर्विचार हो सकता है। राजनीतिक बदलाव भी दिखेगा। पार्टियां जिस जाति की आबादी ज्यादा है उसे अधिक उम्मीदवारी देंगी। संभावना है कि इस वर्ष सितंबर से जनगणना शुरू की जा सकती है।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा