(डिजाइन फोटो)
पड़ोसी ने हमसे कहा, “निशानेबाज, जब से पकैशलेस ट्रांजैक्शन शुरू हुआ है, हमारे पैसे ज्यादा खर्च होने लगे हैं। डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड, ई-वालेट, मोबाइल एप से पेमेंट करने की आदत सी पड़ गई है। ऐसे में हमारी हालत घाटे की अर्थव्यवस्था जैसी हो गई है। जेब पर भारी पड़ गया है कैशलेस पेमेंट!”
हमने कहा, “कैशलेस हो जाने से खुद को होपलेस या हताश महसूस मत कीजिए। दौलत खर्च करने के लिए रहती है। नाव में पानी भरने पर दोनों हाथों से उलीचना जरूरी है, नहीं तो नाव डूब जाएगी। जरूरत से ज्यादा धन होने पर उसे खटाखट-खटाखट खर्च कर डालना चाहिए। शास्त्रों में कहा गया है कि धन की 3 अवस्थाएं होती हैं। या तो वह कंजूस का धन होकर बगैर इस्तेमाल किए तिजोरी में पड़ा रहता है या उसे चोर चुराकर ले जाते हैं। तीसरी अवस्था है उसे दान में दे डालो। कैशलेस ट्रांजैक्शन ने करेंसी को हाथ लगाए बगैर उसे खर्च करने का अवसर प्रदान किया है।”
पड़ोसी ने कहा, “निशानेबाज, समाज में प्रतिष्ठा और आत्मसम्मान बनाए रखने के लिए धन जरूरी होता है। नोटों पर गांधी दर्शन के साथ लक्ष्मी वंदन करते रहना चाहिए।धन कमाना पुरुषार्थ का प्रतीक है। कैशलेस ट्रांजैक्शन के चक्कर में धन की फिजूलखर्ची होती है। नकद पैसा व्यक्ति सोच-समझकर खर्च करता है और उसका हिसाब भी रखता है।”
हमने कहा, “आजकल सबकुछ ऑनलाइन हो गया है। बिजली-पानी के बिल या हाउस टैक्स के लिए लाइन में खड़े होने की जरूरत नहीं, घर या दफ्तर से सीधे ऑनलाइन पेमेंट कर दीजिए। भूख लगी है तो स्विगी या जोमैटो से चंद मिनटों में मनचाहा खाना मंगा लीजिए। सब्जी से लेकर किराना तक ऑनलाइन खरीदिए। ई-बैंकिंग सीखिए तो बैंक जाने की जरूरत नहीं उठानी पड़ेगी। जीवन बेहद सरल हो जाएगा। कहीं-कहीं तो ऑनलाइन पेमेंट पर छूट या रियायत भी मिलती है।”
पड़ोसी ने कहा, “निशानेबाज, लोकतंत्र तब आसान हो जाएगा जब व्यक्ति को मतदान केंद्र जाने की जरूरत ही न पड़े। वह घर बैठे मनपसंद उम्मीदवार का क्यूआर कोड स्कैन कर ऑनलाइन वोटिंग कर दे। नेता भी बड़ी रैलियां करने की बजाय ऑनलाइन बहस करें। मतदाताओं को दिया जानेवाला मुफ्त उपहार भी ऑनलाइन उन तक पहुंच जाए।” लेख चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा