आज का निशानेबाज (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, शिवसेना (शिंदे) के बुलढाणा से विधायक संजय गायकवाड़ ने मुंबई के आकाशवाणी विधायक गेस्ट हाउस की कैंटीन में खराब दाल मिलने पर वहां के संचालक को इतने जमकर घूंसा मारा कि वह फर्श पर गिर गया। बताइए, क्या इतना गुस्सा करना अच्छी बात है? दाल बासी और बदबूदार थी तो उसकी शिकायत करते। मुक्का मारने की क्या जरूरत थी?’ हमने कहा, ‘यह महात्मा गांधी का अहिंसक फार्मूला था कि यदि कोई तुमको एक गाल पर तमाचा मारे तो दूसरा गाल आगे कर दो। शिवसैनिक ऐसी फिलॉसफी नहीं मानते। वह हमेशा आवेश में रहते हैं।
आपको फिल्म ‘तिरंगा’ का नाना पाटेकर का डायलॉग याद होगा- पहले लात, बाद में बात और फिर मुलाकात! शिवसेना वाले किसी को ठोकने में संकोच नहीं करते। गायकवाड़ ने कहा कि मैं जूडो, कराटे और बॉक्सिंग जानता हूं। मुझे कैंटीन कर्मचारी की पिटाई करने का कोई पश्चाताप नहीं है।’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, जरा सी दाल की कटोरी को लेकर इतना हंगामा क्यों होना चाहिए? हमने बासी कढ़ी में उफान की कहावत सुनी थी लेकिन बासी दाल को लेकर पिटाई का मामला अनोखा है।’ हमने कहा, ‘दाल का महत्व समझिए। हर आदमी दाल-रोटी के लिए सुबह से शाम तक मेहनत करता है।
संत-महात्मा कहते हैं- दाल-रोटी खाओ, प्रभु के गुण गाओ! यदि कोई व्यक्ति किसी को ठगने की कोशिश करता है तो उसे फटकारते हुए कहा जाता है- जाओ यहां से! तुम्हारी दाल यहां नहीं गलनेवाली! पुलिसवाले पता लगा लेते हैं कि दाल में कुछ काला है। जांच करने पर पता चलता है कि पूरी दाल ही काली है। कोई व्यक्ति अपनी औकात से ज्यादा बड़ी-बड़ी बातें करने लगे तो उसे कहा जाता है- ये मुंह और मसूर की दाल! लोग होटल में जाकर मां की दाल मांगते हैं, बाप की दाल कोई नहीं मांगता। दाल फ्लेक्सिबल होती है जिसकी मात्रा बढ़ाई जा सकती है। कहावत है- तीन बुलाए तेरह आए, डालो दाल में पानी! विधायक को बासी दाल खिलाना कैंटीनवाले को महंगा पड़ा। एफडीए ने उसका लाइसेंस रद्द कर दिया।’
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा