पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, बीएमसी को लेकर आपकी क्या प्रतिक्रिया है. अबतक तो सब ठीक था लेकिन अब कड़ी प्रतिस्पर्धा की स्थिति में बीएमसी का नतीजा क्या होगा?’’
हमने कहा, ‘‘अभी से नतीजे की फिक्र क्यों करते हैं नतीजा इम्तहान के बाद ही निकलता है. पहले आप बीएमसी में एडमिशन तो ले लीजिए. जिन लोगों की पत्रकारिता, इलेक्ट्रानिक मीडिया या जनसंपर्क अधिकारी बनने में रूचि होती है वे बीएमसी यानी कि बैचलर आफ मॉस कम्युनिकेशन में डिग्री लेते हैं.’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, आप गलत समझ रहे हैं. बीएमसी का अर्थ बृहन्मुंबई कार्पोरेशन होता है. अकेले बीएमसी का बजट देश के कुछ राज्यों से भी ज्यादा है. बीएमसी पर कब्जा करना हल्दी घाटी या पानीपत की लड़ाई जीतने जैसा है. जिसने बीएमसी जीत ली, समझो उसके पास कारूं के खजाने की चाबी आ गई. वहां दौलत ही दौलत है. देश की आर्थिक राजधानी मुंबई और आसपास के इलाके बीएमसी के अंतर्गत आते हैं.’’
हमने कहा, ‘‘आप बीएमसी की बजाय ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी की चर्चा क्यों नहीं करते? टीएमसी को तो मोदी-शाह भी पूरा जोर लगाकर नहीं हरा पाए. आपको राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में विचार करना चाहिए. के. चंद्रशेखर राव ने भी क्षेत्रीयता से ऊपर उठकर अपनी पार्टी का नया नाम भारत राष्ट्र समिति रख लिया.’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, टीएमसी देश की सभी महानगर पालिकाओं पर भारी है. इस पर शिवसेना का कब्जा रहता आया है लेकिन इस बार इस दुधारू गाय पर बीजेपी और शिंदे गुट की नजर लगी है. उद्धव ठाकरे को बीएमसी चुनाव जीतने के लिए लोहे के चने चबाने होंगे. हालांकि मुंबई के कुछ क्षेत्रों में बीजेपी काफी प्रभाव रखती है लेकिन शिंदे गुट के सहयोग के बिना उसका उद्धार नहीं है.’’
हमने कहा, ‘‘मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को 40 विधायकों और 1 दर्जन से ज्यादा सांसदों का समर्थन है परंतु शिवसेना का कैडर किसके साथ है? 2017 के बीएमसी चुनाव में शिवसेना मामूली मार्जिन से जीती थी. उसे 84 और बीजेपी को 82 वोट मिले थे. अब बीएमसी के 3 अक्षरों का अर्थ यह लगाइए कि बड़ी मेजारिटी चाहिए!’’