महिला वोटर (डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: बिहार में लगभग सभी राजनीतिक दलों ने विधानसभा चुनाव जीतने के लिए चांद देने का वायदा किया है, लेकिन उन्हें टिकट व प्रतिनिधित्व न के बराबर ही दिया है। यह महिलाओं के प्रति कैसी चिंता है? महिलाओं को अपने खेमे की ओर आकर्षित करने के लिए राजद के तेजस्वी यादव ने जीविका दीदी, जो सेल्फ हेल्प गुटों के साथ काम करती हैं, को स्थायी नौकरियां और ब्याज रहित ऋण देने का वायदा किया है।
वहीं दूसरी ओर एनडीए इस बात का प्रचार कर रहा है कि उसने महिलाओं को मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत एकमुश्त 10,000 रुपये ट्रांसफर किए है और वह सभी सरकारी नौकरियों में उन्हें 33% आरक्षण देगा व जीविका दीदी को ऋण पर व्याज सब्सिडी देगा।
महिलाओं से यह बड़े-बड़े वायदे करने के बावजूद सियासी पार्टियों ने महिलाओं को टिकट के नाम पर खानापूर्ति ही की है। किसी ने भी उन्हें अपने 33% टिकट नहीं दिए हैं, जबकि इस संदर्भ में संसद में कानून बनाया जा चुका है, जो कि 2029 से लागू होगा।
राजद ने 143 सीटों पर अपने प्रत्याशी घोषित किए हैं, जिनमें से मात्र 24 (16.78%) ही महिलाएं हैं। कांग्रेस के अपने 61 उम्मीदवारों में से केवल 5 महिलाएं (8.61%) हैं। जनतादल (यू) व बीजेपी के 101-101 उम्मीदवारों में 13-13 महिलाएं (12.87%) हैं। एलजेपी-आर ने 6 महिलाओं को टिकट दिए हैं।
243 सदस्यों की विधानसभा में एनडीए ने 35 महिलाओं (14.40%) को टिकट दिए हैं और इंडिया गठबंधन ने 32 (13.16%) महिलाओं को मैदान में उतारा है।
बिहार में पिछले 7 दशकों में सबसे ज्यादा महिला विधायक (34) 2010 की विधानसभा में थीं। महिलाओं की भलाई व प्रगति की बहुत बड़ी-बड़ी बातें राजनीतिक पार्टियां करती हैं, लेकिन जब उन्हें उचित प्रतिनिधित्व देने की बात आती है, तो सबको सांप सूंघ जाता है। जब उन्हें उनकी संख्या के अनुपात में टिकट ही नहीं दिए जाएंगे, तो सियासत में उनका सही प्रतिनिधित्व कैसे संभव हो सकेगा?
बिहार में लगभग 47% महिला मतदाता हैं, उनका वोट लेने के लिए घमासान है और उन्हें तरह-तरह के प्रलोभन दिए जा रहे हैं, लेकिन उनको सत्ता में भागीदार बनाने में आनाकानी की जा रही है।
8 सितंबर 2017 को बिहार विधानसभा में सभी पार्टियों की महिला विधायकों ने एकजुट होकर अपने अधिकारों की मांग की थी कि उन्हें विधानसभा व संसद में 50% आरक्षण चाहिए। लेकिन 8 साल बाद भी उनकी यह मांग ठंडे बस्ते में ही पड़ी है और इसके लिए राजनीतिक पार्टियों के मठाधीश ही जिम्मेदार हैं।
बिहार में महिलाओं की जनसंख्या 47.85% है, लेकिन पिछले तीन चुनावों के दौरान देखने में यह आया है कि उनका मतदान प्रतिशत पुरुषों की तुलना में काफी अधिक रहा है। यही वजह है कि राजनीतिक पार्टियां उन्हें अपना मुख्य आधार मानती हैं और उन्हें आकर्षित करने का प्रयास करती हैं।
यह भी पढ़ें:- नवभारत विशेष: सोने की आसमान छूती कीमत का रहस्य क्या ?
2020 के विधानसभा चुनाव में महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में 5% से अधिक मतदान किया था, जहां पुरुषों का मतदान 54.68% था, वहीं महिलाओं के लिए यह 59.69% था। 2024 के लोकसभा चुनाव में यह अंतर 6.5% के पास पहुंच गया। सवाल यह है कि क्या इस बार भी बिहार में महिलाएं निर्णायक होंगी ?
मुख्यमंत्री नितीश कुमार तो हमेशा की तरह महिलाओं पर ही अपने चुनाव का दांव लगाए हुए हैं। महिला रोजगार योजना के तहत 1।4 करोड़ महिलाओं को 10,000 रुपये प्रति महिला देने से पहले उन्होंने बुजुर्गों की पेंशन में वृद्धि की थी।
पंचायती राज संस्थाओं व शैक्षिक संस्थाओं में महिलाओं को 50% आरक्षण दिया गया और सरकारी जॉब्स में 35% आरक्षण का वायदा किया गया। राजद भी ‘माई बहन योजना’ का वायदा कर रही है, जिसके तहत प्रत्येक महिला को 2500 रुपये प्रति माह दिए जाएंगे।
इन घोषणाओं के बावजूद बिहार में महिलाओं का राजनीतिक सत्ता में प्रतिनिधित्व चिंताजनक ही रहा है। वर्तमान विधानसभा में मात्र 10।70% महिला सदस्य है। आजकल चुनाव पैसे वालों का हो गया है, जिसकी कमी की वजह से महिलाएं मजबूती के साथ चुनाव लड़ नहीं पातीं।
लेख- शाहिद ए चौधरी के द्वारा