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नवभारत विशेष: कागजी साबित हुई बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ मुहिम

बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान के 10 साल बाद भी बच्चियों की सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य की हालत चिंताजनक है। अपराध बढ़े, स्कूलों में सुविधाएं कमजोर रहीं और बजट का बड़ा हिस्सा प्रचार में खर्च हुआ।

  • By आकाश मसने
Updated On: Dec 06, 2025 | 01:58 PM

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ (डिजाइन फोटो)

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Beti Bachao Beti Padhao Campaign: बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 22 जनवरी 2015 को हरियाणा के पानीपत से बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान की शुरुआत की थी। लगभग 100 करोड़ की धनराशि के साथ इस योजना में कन्या जन्म को बढ़ावा देना, बच्चियों की सुरक्षा-शिक्षा के साथ ही उनकी आर्थिक सुरक्षा खास बातें थीं।

आज सुरक्षा का आलम यह है कि बेटियां स्कूल की छत से कूदकर आत्महत्या कर रही हैं। मध्य प्रदेश में 11वीं की एक छात्रा ने आत्महत्या करने से पहले अपनी कॉपी में लिखा-टीचर हाथ पकड़ता था। राजस्थान में पांच तारा जैसे स्कूल में 18 माह से सताई जा रही बच्ची ने आत्महत्या की। खुद सीबीएसई ने इसे स्वीकार भी किया।

हालांकि उच्च शिक्षा में बेटियों का नामांकन बढ़ा है, लेकिन सरकार को इसके लिए उन्हें प्रोत्साहन स्वरूप ट्रांसपोर्ट वाउचर, स्कूटी-साइकिल देने के साथ ही हर राज्य की अपनी अलग योजनाएं हैं। ऐसे में बच्चियों के भविष्य के लिए सुनहरे सपने कैसे पूरे होंगे? जहां पर मिड डे मील मिलता है वहां पर तो आधे बच्चे सिर्फ इसे खाने की प्राथमिकता से ही आते हैं, उनमें कितनी बालिकाएं हैं इस पर किसी ने ध्यान दिया है क्या?

बच्चियों की सुरक्षा का आलम यह है कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने बताया था कि महिलाओं के खिलाफ अपराध में 13 प्रतिशत के आसपास हिंसा बढ़ी है। जब हिंसा की खबरें आती हैं, तो ग्रामीण क्षेत्र या फिर शहरी क्षेत्र में रैलियों के माध्यम से जो संदेश जाते हैं, वह सिर्फ प्रचार तक ही सीमित होते हैं। पांच वर्ष पूरे होने पर संसदीय समिति ने लोकसभा में खुलकर कहा था कि सरकार की प्रमुख योजना बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ में जो धनराशि खर्च हो रही है, वह सिर्फ प्रचार पर और उसने यहां तक कहा था कि 80 प्रतिशत तो हम मीडिया अभियानों पर खर्च कर रहे हैं। यह बात सरकार के लिए सबक थी, पर हुआ कुछ नहीं।

 स्कूलों में सुविधाएं कागजी

बेटियों का स्वास्थ्य हो या फिर उनके विद्यालयों में सुविधाओं की बात, सिर्फ कागजी अभियान ही नजर आता है। आखिर इस योजना को सफलता क्यों नहीं मिल रही? राज्यों में इसकी देखरेख के लिए नियमित बैठक नहीं होतीं, शिक्षकों के अतिरिक्त दूसरों की इसमें भागीदारी बस स्कूटी मिलने या फिर साइकिल मिलने तक सीमित है। एक बड़ा कारण है कि हम अभी भी उस युग में जी रहे हैं, जिसमें सनातनी भाव से बेटे हमेशा बेटियों से अधिक सुख-सुविधा पाते हैं। स्कूलों की स्थिति यह है कि वहां पर छत ही नहीं है और जो शौचालय या दूसरे सुविधा साधन हैं वह सामूहिक हैं न कि बेटियों के लिए अलग!

देश में शायद ही कभी ऐसे कैंप लगते हों जहां पर सिर्फ बच्चियों के स्वास्थ्य का परीक्षण हो, जहां पर उन्हें मिलने वाली सुविधाओं की जानकारी उन्हें दी जाए और उनके साथ अगर कोई दुर्व्यवहार हुआ है तो उस पर तत्काल कार्रवाई हो। पांच तारा स्कूलों की बात करें या फिर सरकारी विद्यालयों की, कहीं पर भी बालिकाओं के लिए कानूनी कैंपों का आयोजन तो दूर, एक प्रतिनिधि तक नहीं है।

यह भी पढ़ें:- संपादकीय: विपक्ष बनाम सरकार, संसद में गतिरोध का आखिर हल क्या है?

पॉक्सो एक्ट मात्र कानूनी नियम बनकर रह गया है। जब बच्चियों के खिलाफ अपराध होता है तो धाराएं तलाशी जाती हैं, देखा जाता है कि अपराधी बालिग है या नाबालिग। इसके विपरीत यह नहीं देखते कि जब बच्ची से जिरह होती है तो वह बालिग है या नाबालिग ? आंकड़े कुछ भी कहें, एक दशक की यात्रा और बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का लाभ सिर्फ यह हुआ है कि यह एक अभियान के रूप में पूरे विश्व में भारत का प्रतिनिधि बन गया है और हमारी मानसिकता उसी रसातल में हिचकोले खा रही है, जिसमें हम सदियों से जी रहे हैं।

प्रचार पर खर्च हुई आधी से ज्यादा रकम

बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान का एक दशक 22 जनवरी 2026 को पूरा होगा, तो हमारे पास कहने के लिए दो बातें होंगी। एक यह कि इन दस वर्षों में केन्द्र तथा राज्य सरकारों के लाख प्रयासों के बाद भी हमारी सोच नहीं बदली है। अभी भी मासूम बच्चियां दैहिक शोषण से, उसके डर से आत्महत्या कर रही हैं। दूसरी बात यह कि जितने करोड़ में यह योजना आरंभ की गई, उसका आधा से अधिक सिर्फ प्रचार पर खर्च हुआ कि हमें बेटी को बचाना और उसे पढ़ाना है।

लेख- मनोज वार्ष्णेय के द्वारा

Beti bachao beti padhao girl safety education failure report

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Published On: Dec 06, 2025 | 01:40 PM

Topics:  

  • Beti Bachao Beti Padhao
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