(डिजाइन फोटो)
पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, बांगलादेश की नई सरकार भारत से मांग कर रही है कि हसीना को उसके हवाले कर दिया जाए। भारत हमेशा से शरणागत की रक्षा करता आया है। वह अपनी पनाह में आई हसीना को कभी नहीं लौटाएगा। यदि हसीना की मर्जी होगी तभी उन्हें स्वदेश वापस जाने दिया जाएगा।’’
हमने कहा, ‘‘भगवान राम ने भी विभीषण को शरण दी थी और कहा था- शरणागत को जो तजहिं हित-अनहित अनुमानी ते नर पांवर पापमय, तिनहीं बिलोकत हानि! अर्थात अपने हानि-लाभ का विचार कर जो अपनी शरण में आए व्यक्ति को त्याग देता है और उसकी रक्षा नहीं करता, ऐसा व्यक्ति पापी है। उसे देखने से भी नुकसान होता है।’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, बांग्लादेश में कितनी ही हसीना होंगी फिर वहां की सरकार पूर्व प्रधानमंत्री हसीना वाजेद को ही क्यों वापस मांग रही है? स्पष्ट है कि उन्हें भारत से प्रत्यर्पित कराने के बाद जेल भेजना या प्राणदंड देना चाहता है। भारत को बांग्लादेश की मांग ठुकरा देनी चाहिए और उसकी गीदड़ भभकी के सामने झुकना नहीं चाहिए। यह प्रधानमंत्री मोदी और भारत सरकार की साख या प्रतिष्ठा का सवाल है। हम किसी के सामने दबने या झुकनेवाले नहीं हैं।’’
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हमने कहा, ‘‘बांग्लादेश को कुछ तो जवाब देना होगा। हम वहां की सरकार को कुछ पुरानी हिंदी फिल्मों के वीडियो भेज सकते हैं जिन्हें देखकर उसे तसल्ली हो जाए। ये फिल्में हैं- एक मुसाफिर एक हसीना! तुम हंसीं, मैं जवां! हसीना मान जाएगी! एक हसीना दो दीवाने! इन फिल्मों में उस जमाने की साधना और बबिता जैसी ग्लेमरस हीरोइन थीं। बांग्लादेश के नेता उनकी तस्वीर देखकर संतुष्ट हो जाएं। 78 वर्ष की बूढ़ी हसीना वाजेद को वापस लेकर क्या करेंगे? हमने जब बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार के बारे में खुलकर लिखनेवाली तस्लीमा नसरीन जैसी लेखिका को शरण दी थी तो शेख हसीना को भी यहां सुरक्षित रखेंगे। बांग्लादेश को समझना चाहिए कि भारत दक्षिण एशिया की महाशक्ति है। हमारे साथ शांति और सहयोगपूर्ण संबंध रखना उसके हित में है।’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, हसीना वाजेद ने भले ही तानाशाही सरकार चलाई लेकिन वह भारत समर्थक थीं। बांग्लादेश को पाकिस्तान से मुक्ति दिलाने और हसीना के पिता बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान को बांग्लादेश का प्रधानमंत्री बनाने में भारत ने ऐतिहासिक भूमिका निभाई थी। यह बात अलग है कि अब उसी बांग्लादेश में शेख मुजीब का पुतला तोड़ दिया गया। बांग्लादेश के नेता पसीना पोछते रह जाएं, हम हसीना को वापस नहीं भेजेंगे।’’
लेख चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा