(डिजाइन फोटो)
नवभारत डेस्क:- महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड व संभवतः जम्मू- कश्मीर में शीघ्र ही होनेवाले विधानसभा चुनावों में लोकसभा चुनाव के समान ही कड़ी प्रतिस्पर्धा होने की संभावना है। आज की बहुदलीय राजनीति में कोई भी अकेली पार्टी अपने दम पर या पिछली उपलब्धियों के नाम पर चुनाव जीतने की उम्मीद नहीं कर सकती, विधानसभा चुनाव में राज्यस्तरीय मुद्दे विशेष अहमियत रखते हैं। महाराष्ट्र में चुनाव की स्थिति ज्यादा पेचीदा है क्योंकि यहां कांग्रेस और बीजेपी के अलावा 2 शिवसेना व 2 एनसीपी मैदान में हैं।
लोकसभा चुनाव के बाद महायुति के सामने मराठा आरक्षण आंदोलन की चुनौती बनी हुई है। मनोज जररांगे पाटिल के तीखे तेवर हैं जो इस मुद्दे पर चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं। महाराष्ट्र के ग्रामीण क्षेत्रों व किसानों में भी असंतोष है। किसान आत्महत्याएं बढ़ी हैं। बेरोजगारी की चुनौती भी कम नहीं है। बीजेपी अपने को महायुति में बड़ा भाई मानकर अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने का इरादा रखती है। वह शिवसेना (शिंदे) व एनसीपी (अजीत) के लिए कम सीटें छोड़ेगी।
यह भी पढ़ें: जगदीप धनखड़ से विपक्ष इतना खफा क्यों? सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की तैयारी
उधर अजीत पवार को इस बात का मलाल है कि वह फडणवीस और शिंदे से सीनियर नेता होने पर भी अब तक मुख्यमंत्री नहीं बन पाए, यह देखना होगा कि अक्टूबर के अंत में संभावित विधानसभा चुनाव में क्या महाविकास आघाडी (शिवसेना-यूबीटी), कांग्रेस तथा एनसीपी (शरद पवार) लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में मिली अपनी सफलता को आगे कायम रख पाते हैं। कांग्रेस को उस समय झटका लगा जब विधान परिषद की 11 सीटों के द्विवार्षिक चुनाव में क्रास वोटिंग हो गई। शरद पवार अपने भतीजे अजीत की चुनौती झेल रहे हैं।
उनका कहना है कि सिर्फ विधायकों से पार्टी नहीं बनती। राज्य में फैले कार्यकर्ता उनके (शरद पवार) साथ हैं। शिवसेना और एनसीपी जैसी दोनों पार्टियों के विभाजन का उनकी राजनीति पर असर पड़ा है। मनसे का प्रभाव काफी सीमित देखा गया है। फिलहाल बीजेपी ने चुनाव की तैयारियां तेज कर दी हैं। हरियाणा में वह अपने दम पर है जबकि महाराष्ट्र की महायुति सरकार में वह निर्णायक हैसियत रखती है।
यह भी पढ़ें: हिंडनबर्ग के आरोपों की निष्पक्ष जांच जरूरी, सवाल किसी बिजनेस ग्रुप का नहीं SEBI की विश्वसनीयता का है
जहां तक झारखंड विधानसभा चुनाव का मामला है, वहां झामुमो और कांग्रेस की गठबंधन सरकार है। वहां चुनाव दिसंबर तक हो सकते हैं। नवंबर में महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने वाला है इसलिए यहां उससे पहले चुनाव कराना पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर तक जम्मू-कश्मीर का चुनाव करा लेने का निर्देश दिया था। देखना होगा कि चुनाव आयोग की इस बारे में क्या तैयारी है।