लुभावना होता है अमेरिकन ड्रीम (सौ.डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, हर इंसान नींद में सपना या ड्रीम देखता है। सपने पर किसी का कंट्रोल या चॉइस नहीं है। कैसा भी अजीबोगरीब या बेतुका सपना आ सकता है। फिल्में रंगीन होती हैं लेकिन सपना ब्लैक एंड व्हाइट रहता है.’ हमने कहा, ‘आप सपने की चर्चा क्यों कर रहे हैं। सपनों की दुनिया में खोए रहेंगे तो जीवन की सच्चाई कैसे जानेंगे? आपको हमारी सलाह है कि स्वप्नदर्शी की बजाय दूरदर्शी बनिए.’
पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, फिलहाल आप हमें अमेरिकन ड्रीम के बारे में बताइए जिसे कितने ही होनहार भारतीय युवा देखते आए हैं। उस सपने की कौन सी खासियत है? अपने देश के प्रदूषण की बजाय अमेरिका के प्रति आकर्षण क्यों रखा जाता है.’ हमने कहा, ‘जो भी मेरिटोरियस भारतीय होते हैं वह माइटी वंडरलैंड ऑफ वेस्ट यानी अमेरिका जाना चाहते हैं। उनके दिमाग में वहां के शिक्षा संस्थानों में ऊंची पढ़ाई, फिर मोटी सैलरी वाली नौकरी, ग्रीन कार्ड हासिल करना और वहीं दिल लग गया तो अमेरिकी नागरिकता के लिए एप्लाई कर वहां बस जाना जैसे विचार आते हैं। इसे कहते हैं- अमेरिकन ड्रीम!
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अमेरिका के आईटी उद्योग व चिकित्सा सेवा में आपको कितने ही भारतीय मिल जाएंगे। विश्व के सबसे अमीर व्यक्ति एलन मस्क ने साफ शब्दों में कह दिया कि अमेरिका को पिछले दशकों में जितना फायदा हुआ है, उसका बड़ा हिस्सा भारतीय टैलेंट की वजह से हुआ है। माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्या नडेला और गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई जैसे जीनियस इसका जीता-जागता सबूत हैं.’
पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, भारत में फंड तथा अवसरों की कमी, लालफीताशाही की रूकावटें और प्रतिभा की कद्र नहीं होने से यहां के टैलेंटेड युवा अमेरिका जाते रहे लेकिन अब ट्रंप अपने देश के गोरों को नौकरियां देने के पक्ष में हैं। वह रिवर्स माइग्रेशन की बात कह रहे हैं मतलब यह कि भारतीय चीनी आदि को वापस उनके देश भेजो। ऐसे में क्या होगा?’ हमने कहा, ‘प्रधानमंत्री मोदी को चाहिए कि प्रतिभाशाली भारतीयों को स्वदेश लाने का उपाय करें जो यहां आकर भारत को विश्व में नंबर वन बना दें। इसके लिए उन्हें अमेरिकन ड्रीम की बजाय इंडियन ड्रीम दिखाना चाहिए.’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा