सुखबीर सिंह बादल (डिजाइन फोटो)
नवभारत डेस्क: अकाल तख्त सिखों की सर्वोच्च और सर्वाधिकार संपन्न संस्था है जिसके आदेश के सामने सिख राजनेताओं को झुकना और अपनी गलतियों के लिए प्रायश्चित करना पड़ता है। वह जिसे ‘तनखैया’ घोषित कर देता है, उसे विनम्रतापूर्वक सजा भुगतनी पड़ती है। दशकों पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री रहे बूटासिंह को भी अकाल तख्त ने स्वर्णमंदिर आनेवाले श्रद्धालुओं के जूते साफ करने की सजा दी थी।
अब पंजाब के उपमुख्यमंत्री रहे सुखबीर सिंह बादल तथा 2015 की अकाली सरकार के मंत्रियों को तनखैया (धार्मिक दुराचार का दोषी) करार देकर अकाल तख्त के टायलेट की सफाई करने, फिर स्नान के बाद लंगर में बर्तन धोने, 1 घंटे तक शबद कीर्तन करने का निर्देश दिया। उन्हें गले में तख्ती डालकर नीली वर्दी पहन हाथ में भाला लेकर सेवादार का काम भी करना पड़ा।
स्वर्ण मंदिर के बाद बादल को अगले 2-2 दिन केसगढ़ साहिब, दमदमा साहिब, मुक्तसर साहिब व फतेहगढ़ साहिब में सेवा कर अपनी सजा पूरी करनी पड़ेगी। अकाल तख्त ने डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख रामरहीम को माफी देने तथा बेअदबी के मामले में बादल को यह सजा दी है। पंजाब में धर्म और राजनीति परस्पर जुड़े हुए हैं।
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अकाली दल का जन्म 1920 में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के टास्क फोर्स के रूप में हुआ था जिसका उद्देश्य ब्रिटिश शासन द्वारा समर्थित महंतों के कब्जे से सिख धर्मस्थलों का नियंत्रण वापस लेना था। बादल को सजा के बाद अकाली दल को अधिक अनुशासित व मजबूत बनाने की दिशा में कदम उठाए जाएंगे। अकाल तख्त ने सभी सिख गुटों से एकता स्थापित करने, सदस्यों की नए सिरे से भर्ती करने तथा आंतरिक चुनाव कराने का निर्देश दिया है।
अनेक वर्षों से सुखबीर बादल को सजा देने और अकाली दल को सशक्त बनाने की मांग की जा रही थी। 1997 से शिरोमणि अकाली दल की नीतियां सिखों की हित रक्षा में विफल रही हैं। 1984 के दंगों से प्रभावित लोगों को न्याय दिलाने में भी वह असफल रहा। सिखों की हत्या के लिए जिम्मेदार अधिकारियों को पदोन्नति देने, उनके परिवार के सदस्यों को चुनाव में टिकट देने के आरोप भी बादल पर हैं।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा