उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने राज्य में संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 24 नए संस्कृत कॉलेज खोलने का निर्देश दिया है. इंटरमीडिएट स्तर के इन सरकारी कॉलेजों में संस्कृत माध्यम से पढ़ाई होगी. सरकार की गंभीरता इस बात से स्पष्ट है कि माध्यमिक शिक्षा निदेशक ने जिला विद्यालय निरीक्षकों को अपने जिले में संस्कृत विद्यालयों के लिए जमीन तय करने को कहा है. यह भी कहा गया कि इन विद्यालयों की संख्या 2 दर्जन से ज्यादा भी हो सकती है. यह सही है कि संस्कृत विश्व की श्रेष्ठ और परिपूर्ण भाषा मानी जाती है. विश्व की अधिकांश भाषाएं संस्कृत से ही उपजी हैं. संस्कृत का व्याकरण उच्च कोटि का है. विदेशियों ने भी माना है कि कंप्यूटर या संगणक के लिए संस्कृत अत्यंत उपयुक्त है.
संस्कृत, फ्रेंच, अंग्रेजी व मराठी में 3 लिंग या जेंडर रहते हैं. संस्कृत में विश्व का श्रेष्ठ साहित्य रचा गया था. वेद, पुराण, उपनिषद के अलावा विभिन्न श्लोक व सूक्तियां संस्कृत में मिलेंगी. संस्कृत का अमरकोश इतना प्रसिद्ध रहा कि लोग कहते थे कि अमरकोश के बाहर कुछ भी नहीं है. पाणिनी का संस्कृत व्याकरण प्रसिद्ध है. इस विद्वान का जहां जन्म हुआ था, वह आज का अफगानिस्तान है. महाकवि कालिदास के साहित्य का सच्चा आनंद लेना है तो संस्कृत आनी चाहिए. रघुवंश व अभिज्ञान शांकुतलम जैसी श्रेष्ठ कृतियों की उन्होंने रचना की थी. वाल्मिकी रामायण संस्कृत का श्रेष्ठ ग्रंथ माना जाता है.
बाणभट्ट की कादम्बरी, भवभूति का उत्तर रामचरित्र व मालतीमाधव तथा मुद्राराक्षस का मृच्छकटिकम अपने युग की श्रेष्ठ कृतियां हैं. संस्कृत में आदि शंकराचार्य की श्रेष्ठ भक्ति रचनाएं हैं. बौद्ध काल में पाली-प्राकृत जैसी लोकभाषाओं को महत्व दिए जाने से संस्कृत पिछड़ गई थी. इसके बावजूद संस्कृत का साहित्य कालजयी एवं लालित्यपूर्ण है. अब प्रश्न आता है कि क्या संस्कृत सीखने से रोजगार मिल जाएंगे? भाषा साहित्य व संस्कृति से जुड़ी होती है. ज्ञानपिपासु उसे सीखना, पढ़ना, लिखना और उसमें संभाषण करना चाहते हैं. जिसने संस्कृत सीख ली, उसके लिए कोई भी भाषा सीखना कठिन नहीं है.
आज भी देश के अनेक राज्यों में बच्चे संस्कृत विषय लेते हैं क्योंकि उसमें गणित के समान शतप्रतिशत अंक मिलते हैं. छात्र संस्कृत में स्नातकोत्तर पढ़ाई करने के बाद डाक्टरेट भी करते हैं. यह मान लेना संकीर्णता है कि संस्कृत सिर्फ पूजा-पाठ अथवा यज्ञ-अनुष्ठान कराने तक सीमित है. इसके विस्तृत आयाम हैं. जर्मन विद्वान मैक्समूलर ने संस्कृत का अध्ययन कर उसके ग्रंथों का जर्मन में अनुवाद किया था. प्राचीन भाषाओं को लुप्त होने से बचाने के लिए उनका पुनरुद्धार किया जाना चाहिए. इजराइल ने भी अपनी मृत समझी जानेवाली भाषा हिब्रू को पुनर्जीवित किया और आज वह उस देश की राष्ट्रभाषा है. प्रयास हों तो संस्कृत भी देवभाषा से लोकभाषा बन सकती है.