पूजा-अनुष्ठान में पति-पत्नी क्यों बैठते हैं साथ (सौ.सोशल मीडिया)
हिंदू धर्म में पूजा-पाठ का बड़ा महत्व है। पूजा-पाठ को लेकर कई मान्यताएं एवं परंपराएं भी हैं। जैसे पूजा के समय पति-पत्नी का एक साथ बैठना। हिंदू मान्यता अनुसार, एक साथ बैठना केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि एक गहरा आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व है, जो पूर्ण रूप से दांपत्य सुख का प्रतीक माना जाता है।
मान्यता है कि पति या फिर पत्नी को अकेले बैठकर पूजा करने से पूजा का पूर्ण फल नहीं मिलता है। इतना ही नहीं किसी भी तीर्थ यात्रा में अकेले नहीं जाना चाहिए। ऐसे में आइए जानिए शास्त्रों के अनुसार पति पत्नी को धार्मिक कार्यों में एक साथ होना क्यों माना जाता है जरूरी।
शास्त्रों के अनुसार, विवाह के समय पति-पत्नी एक दूसरे से सात वचन लेते हैं। इस साल वचन में से एक वचन होता है कि वह एक साथ सभी पूजन कर्म, तीर्थ यात्रा जैसे धार्मिक कार्य करेंगे। एक साथ धार्मिक काम करने से वैवाहिक जीवन में खुशियां आती हैं। इसी कारण शादी के बाद महिला को अकेले पूजा नहीं करनी चाहिए। इससे मनोवांछित फल की प्राप्ति नहीं होती है और न ही तीर्थ यात्रा पूर्ण होती है।
स्त्री को पुरुष की शक्ति माना जाता है। इसी कारण देवी-देवताओं का नाम लेने से पहले उनकी शक्ति का नाम लिया जाता है जैसे सीताराम, राधाकृष्ण आदि।
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पति-पत्नी जब एक साथ धार्मिक काम करते हैं, तो दोनों के बीच तालमेल और प्रेम बढ़ता है। ऐसे में वाद-विवाद होने की संभावना काफी कम हो जाती है।
भगवान शिव से अर्धनारीश्वर स्वरूप धारण करके हर किसी को स्त्री और पुरुष के समानता का संदेश दिया था। अर्धनारीश्वर में भगवान शिव के शरीर में दाएं ओर स्त्री की उत्पत्ति हुई थी। शिव जी ने इस स्वरूप को रखकर संसार को संदेश दिया था कि बिना स्त्री पुरुष अधूरा है और बिना पुरुष स्त्री अधूरी है। ईश्वर की नजर में दोनों समान है और दोनों को बराबर सम्मान मिलेगा।