छठ पूजा का भगवान श्रीराम और सीता मैया से संबंध
chhath puja: सूर्य उपासना का महापर्व छठ पूजा हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है। यह त्यौहार मुख्यतः सूर्य देव को समर्पित है। छठ पूजा मुख्यतः बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के आसपास के क्षेत्रों में मनाई जाती है। छठ पूजा एक या दो नहीं, बल्कि पूरे 4 दिनों तक चलती है और इस दौरान महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र व अच्छे स्वास्थ्य के लिए 36 घंटे तक निर्जला उपवास रखती हैं।
मान्यता है कि इस व्रत को करने से आपकी संतान सुखी रहती है और उसे दीर्घायु की प्राप्ति होती है। वहीं छठी मैय्या निसंतान लोगों की भी खाली झोली भर देती हैं। आइए जानते हैं कौन हैं यह छठी मैय्या और क्या हैं इनसे जुड़ी पौराणिक कथाएं…
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री और सूर्य देव की बहन हैं षष्ठी मैय्या। इस व्रत में षष्ठी मैया का पूजन किया जाता है इसलिए इसे छठ व्रत के नाम से भी जाना जाता है।
पुराणों के अनुसार, ब्रह्माजी ने सृष्टि रचने के लिए स्वयं को दो भागों में बांट दिया, जिसमें दाहिने भाग में पुरुष और बाएं भाग में प्रकृति का रूप सामने आया। सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी के एक अंश को देवसेना के नाम से भी जाना जाता है। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इन देवी मां का एक प्रचलित नाम षष्ठी है, जिसे छठी मैय्या के नाम से जानते हैं।
भगवान राम और सीता ने किया था छठ का व्रत
अवध के राजा मर्यादा पुरुषोत्तम राम और माता सीता ने भी छठ का व्रत किया था। लंका पर विजय पाने के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की पूजा की। सप्तमी को सूर्योदय के वक्त फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था। यही परंपरा अब तक चली आ रही है।
प्राचीन काल से यह भी मान्यता चली आ रही है कि महाभारत काल में सूर्य पुत्र कर्ण ने भी छठ की पूजा की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है।